झुग्गी में तीन प्राणी थे। पांच बरस का टाइगर, डेढ़ बरस का संदीप और 3 बरस का कुलदीप। टाइगर सबसे बड़ा था और उसकी जि़म्मेदारी भी सबसे ज्यादा थी। घर का मालिक हरीराम उसे जाते वक़्त कहकर जाता था-टाइगर, घर का ध्यान रखना और बच्चों का भी। हमेशा तो यही करता रहा वह, लेकिन पिछले कल यानी 29 अक्टूबर का दिन इस घर के लिए क़हर बनकर आया। हरीराम और उसकी पत्नी गीता रोज़ की तरह काम पर चले गए और झुग्गी में टाइगर, बच्चों के साथ था। संदीप माचिस की डिब्बी से खेल रहा था और खेलते हुए उसने तीली जलाना शुरू कर दी। सरकंडों से बनी झुग्गी में किसी तरह आग फैली और सब कुछ जलने लगा। टाइगर की रस्सी जली और वह बाहर की तरफ भागा जबकि बच्चे बाहर नहीं निकल सके।
घर के बाहर भीड़ जमा हो चुकी थी और लोग कोशिश कर रहे थे कि किसी तरह आग पर काबू पाया जाए व बच्चों को बाहर निकाला जा सके। टाइगर ये सब देख रहा और एकाएक वह झुग्गी के अंदर की तरफ दौड़ गया। वापस लौटा संदीप को अपने मुंह से पकड़कर खींचता हुआ। उसे लोगों ने जब तक संभाला, वह दोबारा अदंर की ओर दौड़ा और दूसरी बार में इसी तरह कुलदीप को खींच कर साथ ले आया। वो बच्चों को जिंदा खींचकर लाया था मौत के मुंह से। झुलसे हुए बच्चों को अस्पताल पहुंचाया गया जहां बाद में उन्होंने ज्यादा जल जाने के कारण दम तोड़ दिया। टाइगर ने अपनी जान पर खेलकर उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन दुर्भाग्यवश बच्चो को बचाया नहीं जा सका।
ये कहानी नहीं है बल्कि एक हादसे का बयान है जो चंडीगढ में ही बसे एक गांव कैम्बवाला में हुआ। लोग एक तरफ टाइगर की हिम्मत का चर्चा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सबको दुख है उन दो मासूमों के न रहने का।
टाइगर भी बहुत उदास है। वो दुखी है अपने मालिक हरीराम के ग़म से। चाहकर भी वो उन दो बच्चों को नहीं बचा सका जिनकी जि़म्मेदारी उसे दी गई थी। उसका मुंह और शरीर जगह-जगह से जल गया है लेकिन उसकी तकलीफ इन चीजों को लेकर नहीं है।वह बार-बार उस जगह जाकर बैठ जाता है जहां हर रोज़ उसे हरीराम रस्सी से बांधकर जाते हुए कहा करता था-टाइगर घर की देखभाल करना और बच्चों की भी।
मुझे नहीं पता किस इस हादसे से लोग किस तरह का सबक़ ले सकते हैं लेकिन ये ज़रूर समझ आ रहा है कि हम सो कॉल्ड इंसानों को वफ़ादारी सबक़ सीखने के लिए टाइगर जैसे प्राणियों की तरफ़ ज़रूर देखते रहना चाहिए।
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उपरोक्त जानकारी और तस्वीरें दैनिक भास्कर के क्राइम रिपोर्टर कुलदीप सिंह द्वारा।