Saturday, September 13, 2014

आज तू जो पास नहीं ...

अजब धुन है। गाने और मन दोनों की। महीनों बीत जाएं, कुछ न सुने। सुनने पे आए तो रुकते न बने। ये ग़ज़ल पिछले बरस एेसे ही सर चढ़ बैठी थी। जैसे-तैसे पल्ला छुड़ाया। आज फिर टाकरा हो गया। टाकरा इसलिए क्योंकि ये टक्कर से कुछ आगे की चीज़ है। सो,  फिर से दर्जनों बार सुनी जाएगी। अब तक शायद दस बार तो सुनी जा चुकी है।
सुनते हुए अक्सर इसे शेयर करने से मैं खु़द को रोक नहीं पाती। इसका एक-एक बोल मुझे इतना क़ीमती और सच्चा लगता है कि रहा नहीं जाता इसके बारे में बात किए बगै़र। ज़ाहिर है कई दोस्तों के पास ये ग़ज़ल पहुंच चुकी है।
मैंने पहली बार इसे कब सुना था...शायद तीन साल पहले। या उसके बाद...कुछ ठीक से याद नहीं। पर इसका एक छोटा टुकड़ा कहीं सुना और फिर ढूंढकर पूरी ग़ज़ल सुनी। पता चला 1967  की पाकिस्तानी फिल्म वक़्त की पुकार से है। नासिर बज़्मी की तर्ज़ पर बोल हैं रईस अमरोहवी के। ये फिल्म फ्लॉप बताई जाती है।
खै़र, हमें फिल्म से ज़्यादा सरोकार नहीं। हां इस ग़ज़ल को सुनते हुए तय करना कठिन हो जाता है कि अल्फ़ाज़ और आवाज़ में से उन्नीस कौन है। बराबर बीस वाले इस जादू में जितना डूबो उतना ही उतरते हैं।
मेहदी हसन साहब की आवाज़ में देखें ... जी रहा हूं तेरे बगै़र भी मैं...यहां कैसी नामोशी है लहजे में, जैसे साथ जीने की क़सम को खा लेने के बाद उसे तोड़ दिया गया हो, जैसे गहरी शर्मिन्दगी दामन पकड़े खड़ी हो....आगे देखें...पी रहा हूं अगरचे प्यास नहीं ...कमाल बात है प्यास नहीं है पर आप पी रहे हैं, ये मजबूरी हर कोई कहां समझ पाता है। ये पीना जिंदगी को जीने जैसा भी तो है।

शामे फु़रक़त है और तन्हाई....यहां सुनिए ये सचमुच की तन्हाई जैसी है। कोई आवाज़ है जो इस तन्हाई को दुकेला कर सके, कंपा देने वाली बात ....और फिर दिलासे के बोल-आ के अब कोई आसपास नहीं। जैसे एक शरारत की बात बहुत उदास सुर में कही जाए और रूह को चैन आ जाए।
कुछ 11 मिनट के इस जादू में मैं बार-बार डूबी हूं।
https://www.youtube.com/watch?v=p7NLB843N0Q

शहनाज़ बेगम की अावाज़ में इसी ग़ज़ल को सुनिए...लगेगा घुंघुरुओं की एक पोटली शहद की कटोरी में डुबोकर देर तक रखी गई है। घुंघरू खुलकर बिखर रहे हैं.। इससे पहले मैंने शहनाज़ बेगम को कभी नहीं सुना। उन्होंने यूं गाया जैसे सामने खड़ी ग़ज़ल को हरा देना चाहती हैं। इतनी मिठास के साथ अल्फा़ज़ को जीने और जीत लेने की जि़द इस तरह कम जगह पाई जाती है। ध्यान दें....शामे फु़रक़त है और तन्हाई....में ये आवाज़ तन्हाई तक जाती है  और जैसे तसल्ली भरा हाथ कंधे पर रखकर कहती है-आ के अब कोई आसपास नहीं ...कमाल है ना।
यहां ये जादू साढ़े तीन मिनट का है ...
 https://www.youtube.com/watch?v=EEDGCz2QyWA

और जब जादू बनाए रखने की ये वजहें सामने हों तो कम से कम आज के लिए बाक़ी चीजों को उठाकर कल पर रखा जा सकता है।