Thursday, September 17, 2015

प्रोफेसर ओबेरॉय...आप मुझे माफ़ कर सकते हैं ?



मैं उनसे बहुत नहीं मिलती थी। लेकिन याद बहुत रहती थी। कई दफ़ा वे किसी प्रोग्राम में मिल जाते तो दुआ सलाम होती और जल्दी ही मिलकर लंबी बात करने का वादा भी। उनकी आंखें बीमार थी। बहुत कम दिखता था। पढ़ना तो मुमकिन था नहीं।
एक दिन फ़ोन पर वे बोले-क्या तुम मेरा एक काम कर सकती हो? मैेंने पूछा- क्या ?
वे बोले-बोर्हेस का एक एस्से है ब्लाइंडनेस, क्या तुम मुझे वो पढ़कर सुनाओगी ?
मैंने कहा-हां, ज़रूर।
मेरे पास वो एस्से था नहीं। एक परमप्रिय ने मुहैया करा भी दिया। मैं चाहती थी कि किसी दिन बैठकर उन्हें वो पूरा पढ़कर सुना दूं। लेकिन यूं ही वक्त टलता गया।
कई साल गुज़रे इस बात को। उन्होंने हालांकि उलाहना नहीं दिया लेकिन मुझे याद था कि मैं अपना वादा नहीं निभा पाई।
फिर पिछले साल मैं उसने मिलने गई। ग़रज़ अपनी ही थी। एक इंटरव्यू के सिलसिले में।
मैंने कन्फेस किया कि मैं आपको ब्लाइंडनेस पढ़कर अब तक नहीं सुना पाई। लेकिन जल्दी ही फिर आऊंगी। देर तक बैठूंगी और सुनाऊंगी भी।
उन्होंने कहा-कोई बात नहीं। जब वक़्त मिले, तब आ जाना।
मैं फिर नहीं जा सकी। और आज वे इस दुनिया से चले गए। कल रात इस वक़्त वे ज़िंदा रहे होंगे। आज राख हो चुके हैं। यहां, जहां मैं बैठी हूं, कुछ ही दूर वो जगह है जहां प्रोफेसर एन के ओबेरॉय का अंतिम संस्कार हुआ।
थोड़ी देर बाद मुझे घर जाना है, उसी राह से होकर। मुझे उनके जाने का जितना दुख है उससे ज़्यादा इस बात का कि मैं एक बेहतरीन पढ़ाकू और इल्म से मुहब्बत करने वाले इंसान की इतनी छोटी सी ख़्वाहिश पूरी नहीं कर पाई।
एक पढ़ाकू इंसान के लिए नज़र का चले जाना कितना तकलीफ़देह रहा होगा,  यह सोचना भी उतनी ही तकलीफ़ दे रहा है।
 प्रोफेसर ओबेरॉय क्या आप मुझे मेरी कोताही के लिए माफ़ कर सकते हैं ..? 




-प्रोफेसर एन के ओबेरॉय पंजाब यूनविर्सटी में अंग्रेजी पढ़ाते थे। कुछ सालों से उनकी आंखे बीमार थीं और पिछले दिनों वे कैंसर के कारण अस्पताल में रहे।  बुधवार सुबह वे सोकर उठे नहीं। नींद में ही उनकी मौत हो गई। वे अंग्रेजी के अलावा उर्दू, हिंदी और पंजाबी भाषा के जानकार थे।