Wednesday, September 24, 2008
एक पल की मौत.....
रोशनदान पर टुक-टुक करती चिडि़या अपनी जगह थी, नीम के पेड़ की कत्थई होती पत्तियां भी। कैम्पस के सबसे मोटे तने वाला पेड़ अपनी जगह से ज़रा भी नहीं हिला। यहां तक कि लोहे की बैंच भी अपनी जगह पर कायम रही। फ़ज़ल ताबिश का शेर और सिगरेट का ढेर सारा धुआं लौट-लौट कर कमरे पर दस्तक देता रहा....अंदर एक पल मर चुका था।
कौन रोता है एक पल की मौत पर...................।
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12 comments:
क्यों रुलाती रहती हैं ऐसी-ऐसी लाइनें लिख कर?
छू गयी..आखिरी लाइन दिल को छू गयी
कौन रोता है एक पल की मौत पर...................।
"ah! so painful and emotional"
Regards
कोई नही!
शायदा जी आजकल हर कोई पल पल मर रहा है और हर कोई पल पल रो रहा है अच्छी लाईनें लिखी हैं आपने धन्यवाद
इतनी कम पंक्तियों में इतनी बड़ी बात ! कमाल !
कोई नहीं...इसी बात का तो रोना है.
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गद्य-कविता जैसी प्रस्तुति.
बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
kambakht, bhasaha ka jadu karti rahti hai...
दुनिया में फकीर होना सबको नसीब नही होता। अलमस्त फक्कड़पन, बहुत सारे ब्लॉगों के बीच बेहद ताजगी और नयेपन को लिये हुए दिलों की बात का बयां जो रूह तक उतर जाए देखने को मिला। चाहे अमृता-इमरोज के लिये लिखे लेख हो या आपकी कविताए सबकी सब जिन्दादिल और आजाद डाल डाल फुदकने वाले शब्दों के साथ चुहलेबाजी आप खूब करना जानती है। आपको एक और अच्छा सब्जैक्ट दू अपनी जादूगरी दिखाने के लिये उसका नाम है गुलजार.......
Ek pal ki MAUT
VERY Deplorable, deep and delicate,subtle thought.Time and me, Tide and me and no one else.truth, you have written truth. Thank You For this new eye to awake me from consciousness
एक पल की मौत। हां, एक पल में मौत।
क्या बात है। आपके ब्लाग पर पहली बार आई हूँ। वाह!
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