Tuesday, July 7, 2009

उसकी आंख में बादल था

जिनकी आंख में बादल था...
उसने पांचवीं बार यही लाइन कही लेकिन पूरा होने से पहले ही इस बार भी लड़की ने उसे टोक दिया।
बोली-ये सब बाद में सुनाना बारह बजने से पहले अपने मोबाइल से दो एसएमस कर दो ताज के लिए...

नहीं, मैं नहीं करूंगा।

क्‍यों नहीं करोगे, तुम प्रेम विरोधी हो.....।

नहीं हूं, लेकिन एक भव्‍य स्‍मारक बनाने के लिए हजारों लोगों पर हुए जुल्‍म और उसे बनाने वाले संगतराश के हाथ काटे जाने की बात से द्रवित ज़रूर होता हूं।
ताजमहल के लिए वोट करना, एक तरह से उस सारी क्रूरता के पक्ष में खड़े होना है।

ओह...तुम्‍हारा आदर्शवाद, ये भी कोई बात हुई....।

बात हो या न हो, मैं नहीं करने वाला वोट।
बारह बजने वाले हैं कर दो प्‍लीज एसएमएस, हो सकता है हमारी वोट से ही ताज सेवल वंडर्स में आ जाए...।
ओके कर देता हूं लेकिन मैं इसके पक्ष में नहीं हूं...

अच्‍छा अब सुनो दो लाइनें....
जिनकी आंख में बादल था...

यार आज मेरा मन सिर्फ़ ताजमहल की बात करने का है। तुम साहिर क्‍यों नहीं सुनाते....।

साहिर की ताजमहल वाली ग़ज़ल,
मेरी महबूब कहीं और मिलाकर मुझसे,
ऐसे नहीं गाकर सुनाओ..।
गाकर नहीं सुना सकता, तुम्‍हें पता है न,
गाकर ही सुनाओ....
ओके; सुनो....मेरी महबूब कहीं और मिलाकर मुझसे...
और
ताजमहल उनके बीच आ बैठा था
सफे़द और ठंडा, उसे छूकर देखते हुए वो बोली
चलो आगरा चलते हैं न,,,
नहीं बनारस ठीक रहेगा,
ओहो आगरा, ठीक है पहले आगरा फिर बनारस...
ताजमहल दौड़ रहा था, सात अजूबों की रेस में
उसकी सांस तेज थी, बहुत तेज
प्रेम के स्‍मारक को जीतना ही होगा
सारी दुनिया इंतजार कर रही है,
पटाखे़, फुलझड़ी और रोशनियों के सारे इंतजाम करके
हमारा ताज ओह हमारा ताज
और जीत गया हमारा ताज....।

जीत की आतिशबाजि़यों के बीच लड़के ने एक बार फिर कहा
अब सुनोगी जो मैं कहना चाहता था...लड़की ने नहीं सुना.प्रेम के स्‍मारक का जीत का शोर बहुत था। लड़की सुन नहीं पा रही थी,

लड़के ने बुदबुदाया
जिनक आंख में बादल था
गालों पर बरसात हुई.......


बारिश सचमुच आ गई थी....उसने मुंह आसमान की तरफ़ किया और चुपचाप वापस हो लिया था।
.............................................

07/07/07
.आज से ठीक दो साल पहले, जब ताजमहल को विश्‍व के सात अजूबों में शामिल करने की मुहिम जो़रों पर थी तो यह द्रश्‍य दिखा था।

10 comments:

M VERMA said...

बहुत गहराई --
ताज को एसएमस जिताया -- प्रेम ने नही

Unknown said...

bahut khoob !

Udan Tashtari said...

बहुत लाजबाब चित्र उभारा है.

श्यामल सुमन said...

मजेदार प्रस्तुति। वाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ACHARYA RAMESH SACHDEVA said...

HAN JI TAJMAHAL SEVEN WONDER HO GYA.
ZINDGI U HI RAHI.
AAPKA LEHZA ACHCHHA LAGA.
KASH ESKE AAGE KI BAAT BHI LIKH DETE.
MAA-BAP, BHAI BAHAIN KO SMS KARE NA KARE. BHAI BHAI KE BEECH MEIN DIWAR HO SAKTI H. PRANTU TAJMAHAL KE LIYE SMS KE BINA SHAYAD .........
RAMESH SACHDEVA
hpsdabwali07@gmail.com

डॉ .अनुराग said...

हुम ..दिलचस्प नज़ारा था .वैसे जोधपुर के कुछ महलो को देखते वक़्त कई बार ऐसे ख्याल दिमाग में आते है .की कैसे इतनी दौलत इस्तेमाल हुई अमर होने के लिए....पर पूरा इतिहास ऐसी विशमताओ से भरा पड़ा है .घटनाओं को देखने का सबका एक नजरिया है...खुद हम भी बदलते है अपनी सोच .उम्र के अलग मकाम पे....

ओम आर्य said...

बहुत ही गहरी बात आपने कह दी ................काफी रोचक है आपकी रचना ............बहुत ही सुन्दर

Dr. Chandra Kumar Jain said...

हमेशा की तरह सुन्दर
सधी हुई प्रस्तुति.
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चन्द्रकुमार

sandhyagupta said...

Yun hi likhte rahiye.

Unknown said...

बहुत खूब शायद. ताज को किसी एस एम् एस की ज़रुरत है क्या?
क्या स्वर्ण मंदिर के लिए यह बताने की ज़रुरत है कि यह पंजाब और पूरी दुनिया में बसे सिखों की धरोहर है...
हम बाज़ार की भाषा में क्यों तोलते हैं प्रेम को??