Thursday, October 30, 2008

शहादत....

आज बस ये दो लाइनें पढ़ लें-


जा अपने ख़ून दे इल्‍ज़ाम तों तैनूं बरी कीता..
शहादत देन वाले दा कोई क़ा‍तल नहीं हुंदा ।
                      कविंदर चांद

12 comments:

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

बहुत शानदार-िदल को छू लेने वाली पंिक्तयां ।

मैने भी अपने ब्लाग पर एक किवता िलखी है । समय हो तो आप पढें. आैर प्रितिक्रया भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आपकी ब्लाग पर पहली बार आई। आपके शब्दों के खेल को पढ़ रही थी। क्या बात है शायदा। आप तो बहुत अच्छा लिखती हैं।

Udan Tashtari said...

गजब पंक्तियां

Arun Aditya said...

माफ़ कर देना जिगर वालों का काम है। इस चाँद के जिगर में बहुत आग है।

maheep singh said...

मैंने भी कुछ लिखा है अपने ब्लॉग अर्ज़ किया है पर
ज़रूर पढ़ें

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मर्म की महीन सी छुवन की
अनुभूति हुई पढ़कर !
================
शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

admin said...

इन्हें पढकर अचानक ही मन में यह पंक्तियाँ आ गयीं-
सतसइया के दोहरे ज्यों नाविक के तीर
देखन में छोटे लगे घाव करें गम्भीर।
बधाई।

विधुल्लता said...

तुम्हे पढ़कर हमेशा ही राहत महसूस होती है ,फैज कहतें हैं....सोजिशें दर्दे-दिल किसे मालूम,कौन जाने किसी के इशक का राज, बधाई,

अभिषेक मिश्र said...

शहादत देन वाले दा कोई क़ा‍तल नहीं हुंदा ।
भावपूर्ण पंक्तियाँ. शुभकामनाएं. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

beshaq bahut sunder panktiyan ,jeevan ki yathartha hai in panktiyom mein.shahidon kaa smaran hi pawan hai.
Meri mangalkamnayen
aapka hi
dr.bhoopendra

Prakash Badal said...

कमाल कर दिया वाह

कंचन सिंह चौहान said...

कभी कभी दो ही पंक्तियाँ रूह तक चली जातीं है....! वही असर...!