वो अंधेरा कितना गहरा है........इस अंधेरे सा ही... या इससे कुछ कम....पता नहीं पर ये गीत तो हर अंधेरे में इसी तरह बजता है न....ये बिजली राख कर जाएगी....तेरे प्यार की दुनिया........गीत है या कोरी बद-द़ुआ...मीलों-मील.......बरसों से एक ही सुर में बिना किसी फेर-बदल के बरसती सी बद-दुआ....। नहीं....शायद यूं कहना चाहिए कि हर बार सुनने पर और ज्यादा दिल से निकलती सी....और ज्यादा नाकाम और ज्यादा उदास आवाज़...और जितनी बार सुनो उतनी ही बार आंख को नमी देती हुई धुन...।
बर्फ़ से ज़्यादा ठंडी रात के पहर बीत जाने पर जब धुंध जमने लगे तो भी इस आवाज की तल्ख़ी ज़रा सी सर्द नहीं पड़ती...जैसे दिल में कोई अलाव जलाकर ताप रहा है.........जैसे उस अलाव में अपना सबकुछ झोंक दिया गया हो.....जैसे खाली हाथ एक इंसान, अपनी आखि़री पूंजी भी लुटा देने के बाद आग के जलते रहने तक जी सकने की ताकत को संजो रहा हो.........जैसे इस गीत को सुन लेने तक की ही मोहलत हो उसके पास.. आग के बुझ जाने से पहले इस आवाज का उन कानों तक पहुंच जाने का एक इंतजार सा भी तो दिखता है कभी, जिनके लिए ये कहा जा रहा हो कि............न फिर तू जी सकेगा और न तुझको मौत आएगी....।
कभी तन्हाईयों में यूं हमारी याद आएगी...........गीत बहुत छोटा सा है........बजता है और महसूस करते ही ख़त्म होने लगता है। लेकिन मुझे तो लगता है कि ये जब ख़त्म होता है दरअसल शुरुआत वहीं से होती है.... एक बार सुनने के बाद देर तक गूंजता है कानों में। रास्ता ख़त्म हो जाता है, रात भी लेकिन गीत ख़त्म नहीं होता। करवट-दर-करवट.....सांस-दर-सांस...बजता जाता है। गहरी होती हुई मुबारक बेगम की आवाज़ समझाने लगती है, सवाल मत उठाओ कि क्यों दुआ बद-दुआ बन गई......ये भी मत पूछो कि ये अंधेरा भूल जाने का है या भुला दिए जाने.......न ही इस इसमें उलझो कि जिसके लिए दुनिया वार देने की बात की जा सकती है उसी की दुनिया को ख़ाक कर देने का ख़याल कैसे आ सकता है....बस इस पुकार को सुनो और हो सके तो महसूस करो इस आवाज़ के उस दर्द को जिसमें बद-दुआ दरअसल एक ऐसा ख़याल है जो हर बार ज़बान से निकलकर वापस उसी तक आ रहा है, खुद उसे ही ख़ाक कर देने के लिए।
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-वैसे कितनी ग़लत बात है, सारी दुनिया जब नए साल के स्वागत में मगन हैं तो हम यहां मनहूसियत फै़ला रहे हैं, माफ़ कीजिएगा ' दरअसल मुबारक बेगम शहर में थीं और उनका आना इस गीत को ताज़ा कर गया, लगातार सुन ही रही हूं।
12 comments:
गाने का मालूम नहीं, शायद फिर कभी कहें, लिखे के अंधेरों, मनहूसियत, करवट-करवट की उचाट बेचैनियों की कहेंगे कि कैसी अटकी-सी सांझ की न ठहरनेवाली, न कहीं पहुंचानेवाली दबी-दबी-सी तान है..
नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज
आपको तथा आपके पुरे परिवार को नव्रर्ष की मंगलकामनाएँ...साल के आखिरी ग़ज़ल पे आपकी दाद चाहूँगा .....
अर्श
मुबारक बेगम की आवाज़ की जादूगरी मे आपको भी बाँध लिया ना शायदा जी :)
नया साल तो आयेगा ही!
वक्त कब रुका है ?
आपको खूब सुनहरे गीत सुनवाता हुआ आये और आपसे ऐसा ही मधुर लिखवाये यही शुभकामना है
स स्नेह,
- लावण्या
... न फिर तू जी सकेगा और न तुझ को मौत आएगी ...
क्या है भाई! काएकू!
नए साल का हर पल लेकर आए नई खुशियां । आंखों में बसे सारे सपने पूरे हों । सूरज की िकरणों की तरह फैले आपकी यश कीितॆ । नए साल की हािदॆक शुभकामनाएं-
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geet se jyada to mujhe aapki ye abhivyakhti acchi lagi ..
aapne bahut accha likha hai , badhai .
vijay
pls visit my blog : http://poemsofvijay.blogspot.com/
geet sun nahin pa rahi hun-net prob ho sakti hai[??]
आप तथा आपके पूरे परिवार को आने वाले वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
किस गहराई से महसूस किया है इस गीत को आपने...! सलाम उस एहसास को...!
नये वर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ
यह मनहूसियत थोड़े ही है। जब सब जश्न मनाते हों तब उदास होने में अलग ही सुकून है।
या शायद विद्रोह करने की संतुष्टि..
मुबारक बेगम जी को सुनवाने व पढवाने के लिए आपका बारम्बार धन्यवाद
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
कभी म्हारे ब्लाग ते भी पधारो और अपने बहूमूल्य आर्शिवाद रूपी कमेंट की बरसात करो
जैसे दिल में कोई अलाव जलाकर ताप रहा है........
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