Thursday, January 15, 2009
सबसे ठंडी रात...
...तो सूर्योत्सव बीत चला...और चतुर्थी भी अब बीती हुई ही तो है...। दिन बड़े होंने लगेंगे....शायद कुछ कम सर्द भी। लेकिन...सबसे ठंडी रात के आकर गुज़र जाने से पहले कैसे जा सकते हैं ये सब....कैसे जा सकते हैं...। सूर्य उत्तरायण में है....शुभ काम शुरू हो सकेंगे.....लेकिन सबसे शुभ रात के आकर जम जाने से पहले कैसे शुरू किया जा सकता है कोई और काम...। मैं नहीं कर सकता ...कम से कम ऐसा कोई काम तो हरगिज़ नहीं कर सकता जिसे शुभ कहा जा सके। मैं इंतज़ार करूंगा मौसम की सबसे ठंडी रात का ....उतनी ठंडी कि उसके बाद किसी और ठंड की गुंजाइश बाक़ी न रहे...। उस रात जब कोहरा बिल्कुल अंधा होकर बरसेगा.....मैं सर से लेकर पांव तक बर्फ़ हो जाऊंगा....मेरी उंगलियां सिगरेट पकड़ने की कोशिश में टेढ़ी होने होंगी....और होंठ जमकर नीले पड़ जाएंगे...। होंठ ही नहीं मेरा सारा बदन नीला होने लगेगा... रगें जमी हुई सी.....मैं एक नाम पुकारना चाहूंगा लेकिन सांस ठंडी होकर उस नाम को जमा देगी...। ..ओवरकोट और जूते कोहरे की बारिश में पूरे भीग चुके होंगे......तब मैं एक कविता लिखूंगा...। .उसमें ऐसी आग भरूंगा कि वो सर्दियों का लोकगीत बन जाएगी..... प्रेम का ऐसा वर्णन होगा वहां, कि लोग उसे तापकर मौसम बिता लिया करेंगे.....मैं उस कविता की देह में वो सारी उंसास रोप दूंगा जो अंतस में गरमाहट को छिपाए रखती हैं....उसे लिखते हुए अपने गाढ़े ठंडे लहू को इतना जलाऊंगा कि पढ़ने वाले हमेशा एक हरारत में डूबा हुआ महसूस किया करेंगे.....मौसम की सबसे ठंडी रात में एक कविता आसमान से उतरकर मुझ तक ज़रूर आएगी........। सबसे ठंडी रात का आना अभी बाक़ी है....कविता का मुझ तक आना अभी बाक़ी है...।
डायरी से...
फोटो गूगल से साभार
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7 comments:
beauuutifullll....!
हमें तो यह एक सुंदर व्यथा सी लग रही है. आभार.
सबसे ठन्डी रात का आना अभी बाकी है ..बढ़िया
दिलचस्प ! इस के ओर पन्ने मिलेगे पढने को ?
सुन्दर! घातक!
sadqey!kahti rahen
और आपने खूब कहा जी
...ये हमारी टीप्पणी भी स्वीकारेँ
कवि की बातेँ बहुत पसँद आई -
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