सर्दी बढ़ रही है...सुधर जाओ सिंड्रेला।
ज़रा ख़याल करो।
अपने पांव देखो...कितने खुरदरे और रूखे हैं,जैसे कभी कोमल थे ही नहीं।
कब तक राजकुमार पर बोझ बनी रहोगी...?
खिड़की पर सिर टिकाए, राह देखोगी कि वह आकर तुम्हारा हाल पूछे...?
ज़रा ख़याल करो।
अपने पांव देखो...कितने खुरदरे और रूखे हैं,जैसे कभी कोमल थे ही नहीं।
कब तक राजकुमार पर बोझ बनी रहोगी...?
खिड़की पर सिर टिकाए, राह देखोगी कि वह आकर तुम्हारा हाल पूछे...?
बहुत समय बीता उस बात को , जब उसने कांच के नाजु़क सैंडल लेकर लोगों को तुम्हारी तलाश में दौड़ा दिया था।
मत सोचो कि वो सिर्फ तुम्हारे लिए बने थे, इत्तेफा़क़ भी तो हो सकता है, उनके नाप का सही होना।
चलो मान लिया, राजकुमार ने तुम्हें पांव ज़मीन पर न रखने की ताक़ीद की थी...
चलो मान लिया, राजकुमार ने तुम्हें पांव ज़मीन पर न रखने की ताक़ीद की थी...
पर ये तो नहीं कहा था कि ज़मीन और पांव के बीच की सारी तकलीफों की किताब उसे ही पढ़नी होगी हमेशा...।
क्या ये याद रखना बहुत मुश्किल है कि पांव तुम्हारे हैं, इसलिए उनकी फटी बिवाइयों का दुख भी तुम्हें ही जानना चाहिए....।
जाओ सिंड्रेला अपने लिए एक जोड़ी जूते खरीद लो, राजकुमार के पास कुछ और नहीं है तुम्हारे लिए, और यूं भी नंगे पांव रहना, तुम्हें शोभता है क्या...?
क्या ये याद रखना बहुत मुश्किल है कि पांव तुम्हारे हैं, इसलिए उनकी फटी बिवाइयों का दुख भी तुम्हें ही जानना चाहिए....।
जाओ सिंड्रेला अपने लिए एक जोड़ी जूते खरीद लो, राजकुमार के पास कुछ और नहीं है तुम्हारे लिए, और यूं भी नंगे पांव रहना, तुम्हें शोभता है क्या...?
सिंड्रेला, इस बात का भी अब कोई भरोसा है क्या... कि राजकुमार के पास तुम्हारे साथ नाच लेने का वक़्त होगा ही।
सुनो, हो सके तो सीख लो, सर्दी को सहना, यही दरअसल सर्द नज़र को सीख लेने का पहला सबक़ है।
लेकिन मुझे पता है, तुमसे कुछ भी नहीं होगा....तुम सुधर नहीं सकतीं सिंड्रेला... क्या अब भी नहीं!
लेकिन मुझे पता है, तुमसे कुछ भी नहीं होगा....तुम सुधर नहीं सकतीं सिंड्रेला... क्या अब भी नहीं!
10 comments:
सुनो, हो सके तो सीख लो, सर्दी को सहना, यही दरअसल सर्द नज़र को सीख लेने का पहला सबक़ है।
-बहुत उम्दा बात!!
एक किस्से के बहाने लड़की को ज़रूरी हौसला रखने की हिदायत देती कविता.
भले ही सिंड्रेला एक आभासी चरित्र हो पर कई बार मुझे वो अपने ही समाज में शोषित "सर्वहारा" सी लगती है ! हो सकता है , ये मेरी निजी अनुभूति हो किन्तु सिंड्रेला के "परिजन और राजकुमार" कथा के पूंजीवादी हिस्से ( वर्ग ) हैं , इस हिसाब से मां और बहनों के शोषण से मुक्ति के लिए राजकुमार से अपेक्षा सिरे से ही व्यर्थ है !
फैंटेसी में यथार्थ को ढूंढना भले ही अव्यवहारिक लगे किन्तु मुझे लगता है की सिंड्रेला को 'सुधरने' की नसीहत देने बजाये 'वर्ग चेतना' की घुट्टी पिलाई जानी चाहिए !
(शायदा मैम, पिछले कुछ दिनों से आपको पढ़ रहा हूँ इसलिए एक पाठक की हैसियत से प्रतिक्रिया दे देता हूँ मेरा ख्याल है की लेखक और पाठक के दरम्यान असहमतियों की गुंजायश हो सकती है इसलिए मेरी टिप्पणियों को इसी रौशनी में देखा जाये )
नहीं सुधरेगी....कम से अगले कुछ सालो तक तो
बिना कोई सवाल किए तुमने कैसे मान लिया सिंड्रेला कि राजकुमार के पास तुम्हारे साथ नाचने के लिए वक्त नहीं होगा...
और फिर वक्त होने या नहीं होने का फैसला तुम्हारे ऊपर निर्भर क्यों नहीं हो सिंड्रेला...
सिंड्रेला, क्यों हर बार तुम ही राजकुमार का रास्ता देखो...
और पांव तुम्हारे हैं, यह याद रखना तो आसान होगा, बस अपनी फटी बिवाइयों के दुख का सिरा पकड़ लो।
और सुधरना राजकुमार को है, तुम्हें नहीं...।
सुना सिंड्रेला...
(सच तो यह है कि राजकुमार ने अब तक खुद को वैसा बनाया ही नहीं है, कि वह तुम्हें समझ सके...)
अद्भुत संवेदनशीलता से भरे भाव....!!
क्या सुनाएँ की सिंड्रेला खुश
हो जाये ?
तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको
क़तील शिफाई
लेख थोड़ा उच्च स्तर लिए है। लेकिन बात यही है कि दुख और सुख, दोनों को ही सिंड्रेला का झेलना सीखना होगा.. शायद इस बार सिंड्रेला बात समझ जाए. ..। आपकी लेखनी मन को छूती है। आपके ब्लाग का नाम उनींदरा भी आकर्षक है। हमेशा जागते रहने की नसीहत देनेवाला...
सुधरने की कोशिश में वजूद रह पायेगा सिंड्रेला का.. ? वाकई एक किस्से का तार पकड़कर ऊँची बात कहा डाली आपने..
प्यार में पड़कर कभी किसी को अपने पांव की बिवाइयों की तकलीफ नज़र नहीं आती। इंतज़ार ना करने की कोई सलाह उसके दिमाग तक पहुंच सकती है, दिल तक नहीं और इंतज़ार दिल का मिजाज है, दिमाग कभी लंबे इंतज़ार के हक में नहीं होता। अपना दुख प्यार के ना दिखने वाले अहसास के आगे कुछ नहीं होता। आप सिंडरेला को कोई भी ऐसी सलाह दे लीजिए, उसका दिल खुद को सजाएं देने से बाज नहीं आ पाएगा। उसके लिए बस दुआ कीजिए।
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