क्या बुरा था...भयानक ठंड और गाढ़े कोहरे के बीच, हाईवे पर हर रात सैकड़ों किलोमीटर गाड़ी चला सकने का जुनून...।
और, निहायत यूं ही सी एक छोटी सड़क आत्मविश्वास को पानी कर देती है...।
मित्र नहीं होते प्रतिभाओं और पागलों के...
अनसुना करते हुए एक बांई हथेली की अभ्यस्त जकड़ बताती है-सड़क हमेशा देखभाल कर पार करनी चाहिए...
अभिनय का अभ्यास उसे खूब था।
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आदत, देर नहीं लगाती, उंगली से दामन तक आने में.., फिर डर लगने लगता है हाईवे की भीड़ से।
अब कभी अकेले सड़क पार नहीं हो पाएगी...बुरा किया, आदत डाल ली...।
उड़ान भरो, ओ मेरे युवा बाज..
कहां गई उड़ान...कहां,
सड़क पर सारे लोग जैसे मार डालने के लिए ही तो उतरे हैं,
सांस ऐसे फूलती है जैसे पानी बस, डुबो ही लेगा,,,
अब ईश्वर नहीं रहा पहले की तरह उदार..
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सही कहा-प्रेम से अधिक, अप्रेम पर होता है आश्चर्य
अब मेरा घर और दफ़तर सड़क के एक ही तरफ़ है
सड़क पार न करने का विवशता नहीं, बस भय है
हाईवे के फि़तूर हवा हुए भी वक़्त हो चला....
हवाओं का क्या है...गूंजता रहे
मरीना, मुझे प्यार करती हो न...
बहुत।
सदा करती रहोगी...
हां।
बहुत।
सदा करती रहोगी...
हां।
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बोल्ड की गई लाइनें और शीर्षक आएंगे दिन कविताओं के / मरीना स्विताएवा, से। अनुवाद वरियाम सिंह का।
8 comments:
अप्रेम शव्द का गहरा अर्थचिंतन. धन्यवाद.
आज के दौर में सब लोग बदल रहे है तो फिर ईश्वर को कोई क्या कहेगा...बढ़िया भाव..सुंदर रचना..बधाई
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
उडानो पर अंकुश और फिर महानगरीय त्रासदियाँ. वाकई विसंगतियो का जमावडा है
अद्भुत शैली वाह
सही कहा-प्रेम से अधिक, अप्रेम पर होता है आश्चर्य.....
बेहतरीन कविता / प्रस्तुति के लिए आभार !
सांस फूल रही है..
कमाल..!!!
बोल्ड लाइन के बारे में नहीं भी लिखती तो चलता... इनमें कविताओं का समय लग ही रहा था... बहुत अच्छी कॉम्बिनेशन है...
मैंने कहा था ना ....सिंड्रेला नहीं सुधरेगी..कितने सपने समेटे बैठी है भीतर तक....अब भी इस भीड़ भरे हाइवे पे ..
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