एक गडरिए ने अपनी सभी भेड़ों को चराने के बाद बाड़े में लाकर बंद कर दिया, सिवाय भेड़ के एक बच्चे के। जिसे वह कंधे पर बिठाकर लाया था। उसने उसे नहला-धुलाकर हरी घास खिलाई। उक्त नजारे को पास ही एक पेड़ के नीचे बैठे ईसा मसीह अपने शिष्यों सहित देख रहे थे। अंतत उन्होंने गडरिए से ऐसा करने का कारण पूछा, तो गडरिए ने उत्तर दिया-यह रोज भटक जाता है, इसलिए इसे इतना प्रेम देता हूं कि वह फिर से न भटके। यह सुनकर ईसा मसीह ने अपने शिष्यों से कहा-प्रेम के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्रेम से ही रास्ते पर आते हैं, यह तुम गडरिए से सीखो।
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कितनी सुंदर बात यहां कितनी सादगी से कही गई है। इस मासूम से प्रसंग को 23 दिसंबर के दिन दैनिक भास्कर की साप्ताहिक पत्रिका मधुरिमा में पढ़ा। यहां बांटने से खुद को रोक नहीं पाई क्योंकि प्रेम के इतने सादे और सुंदर भाव बांटने के लिए ही होते हैं। वैसे सोचो तो प्रेम मेमने सा मासूम ही तो लगता है।
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कितनी सुंदर बात यहां कितनी सादगी से कही गई है। इस मासूम से प्रसंग को 23 दिसंबर के दिन दैनिक भास्कर की साप्ताहिक पत्रिका मधुरिमा में पढ़ा। यहां बांटने से खुद को रोक नहीं पाई क्योंकि प्रेम के इतने सादे और सुंदर भाव बांटने के लिए ही होते हैं। वैसे सोचो तो प्रेम मेमने सा मासूम ही तो लगता है।
13 comments:
वाकई अत्यंत सुन्दर बात कही गयी है
सुंदर बात ..सीखने योग्य.आभार!!
सच है ,प्रेम से भावनात्मक जुड़ाव उत्पन्न होता है
हम्म्म !
lekin prem ke naam par adhiktar ham kisi ko baade men kaid karna chahte hain
काश हर भटकाव को प्रेम मिल जाये और हर प्रेम भटकाव को वापस ला सके....
बाड़े में बंद भेड़ें भी कभी मेमना रही होंगी और तब उन्हें भी गडरिये नें प्रेम देकर भटकनें से बचाया होगा, गडरिया अब उन्हें मेमने की तरह से प्रेम नहीं देता पर वो भटकती नहीं !
भले ही ईसा ने ये कहा नहीं ,पर कथा कहती है की भटकाव और शायद प्रेम की भी ,कोई उम्र हुआ करती है !
kahani se sikhna chahie.
लेकिन यह हमेशा सच न हो, कभी प्रेम भटकाता भी है?
बहुत अच्छी
सधी, सहज पर गहरी बात.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
sundar. vese us akhbaar me bhi padhhaa tha aour yah bhi socha thaa ki ise prasaarit anya tarike se bhi kiyaa jaa sakataa he. aapne yah kiya, dhanyvaad
जो था उससे बेहतर कल के लिये ...अनंत शुभकामनायें !
Ali
(31.12.09)
बहुत सुंदर। प्रेम की तरह।
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