आंखों मे गुस्ताख़ी, प्यार कर लेने की। कुफ़्र सर लेने की। जिंदगी, इश्क़ में बसर कर देने की। बसर करने से पहले ही अंधे कुएं में जिंदा दफ़न होने पर भी प्यार से तौबा न करने की। इसी गुस्ताख़ी का नाम है अनाकरली। जिसने इश्क़ किया महलों की दीवारों को झकझोर कर, हिंदोस्तान के तख्त़ को हिलाकर और हारकर भी जीत गई महाबली अकबर से। इतिहास में इसका कोई जिक्र नहीं है। कहानी सुनी-सुनाई, फिल्मी पर्दे पर देखी-दिखाई हो सकती है लेकिन क्या करेंगे अनारकली के उस मक़बरे का जो सैकड़ों बरसों से एक ही रट लगाए है कि यहीं जिंदा दफ़न है अनाकरकली। गुस्ताख़ नज़रों वाली अनारकली, सैकड़ों बरस गुज़र जाने पर भी जिसका सिर्फ़ जिस्म ही खा़क हो सका। वो आंखें आज भी जिंदा हैं, हां नही दिख पाती हरेक को। उन्हें देखने के लिए दीदावर चाहिए जो बदकिस्मती से पैदा ही न हो सका। और अगर हुआ भी होगा तो न पहुंच सका उस जगह जहां दफ़न है एक कली अनार की, जो आखिरी सांस तक कहती रही- इसे मजा़र मत कहो, ये महल है प्यार का।
साहिबे आलम का इंतजार अनारकली को सदियों से है, लेकिन शहजा़दे की लाचारी फिर भी अपनी जगह कायम है। बेचारी अनारकली दीवार में चुनवा दी गई या एक अंधेरे कुएं में जिंदा दफ़न कर दी गई, रही तो कनीज़ ही। शहजा़दे की कि़स्मत में तवारीख़ का हिस्सा बनना तो लिखा था, अनारकली के तो वजूद को भी नकार दिया गया। भला हो उस इश्क़ का, जो किसी भी वजूद से बड़ा था, जिसने तवारीख़ में नहीं लेकिन लोगों के दिलों में अनारकली को जगह दी। अनारकली का जि़क्र दरअसल बात है उस इंतजा़र की जो धड़कता है लाहौर में अनारकली बाजार में बने मजा़र से लेकर हर उस दिल में जहां प्यार का बूटा उगता है। वही इंतजा़र जो अनारकली की गुस्ताख़ आंखों की सियाही को और काला कर गया होगा, मौत से बस एक पल पहले, सांस घुटने तक ये इंतजा़र कायम रहा होगा और इसी इंतजा़र के पीछे रही होगी वो उम्मीद जिसमें शहजा़दा आकर उसे गले लगाने वाला था। सदियों के बावजूद अगर वो जि़क्र बाकी है, तो यकीनन बाकी होगा अनाकरकली का इंतजा़र भी।
इंतजा़र बहुत जानलेवा होता है, खा़सतौर पर उस वक्त़ जब सिर्फ एक फरीक़ इंतजा़र में हो और दूसरे को ये अहसास भी न हो कि उसे कहीं पहुंचना भी है। ऐसा ही इंतजा़र तो था अनारकली का। ईंट-दर-ईंट जब उसे मिटाया जा रहा था तो शहजा़दा सलीम को कहां पता था कि उसे कहीं पहुंचना है.... कोई है ! जो उसके इंतजार में मिट जाने वाला है। कोई है, जो हर गुज़रने वाले पल के साथ मौत के और ज़्यादा क़रीब होता जा रहा है। वजह चाहे जो रही हो लेकिन नतीजा तो यही था कि सलीम वहां नहीं पहुंच पाया।
अनारकली महज़ एक कि़स्सा नहीं है, एक कहानी नहीं है बल्कि एक जज़्बा है खुद को कुर्बान कर देने का। इसी जज़्बे को पिछले साठ बरस में अलग-अलग अंदाज में पर्दे पर उतारा गया। बीना राय, नूरजहां और मधुबाला और ईमान अली, सबने अनारकली के दर्द को पर्दे पर अलग-अलग अंदाज में बयां किया, लेकिन एक चीज हर जगह कॉमन थी और वो था अनारकली का इंतजार। इस इंतजार का प्रोजेक्शन सोचा-समझा नहीं था, बल्कि ये था इस कैरेक्टर का असली रंग। बीना राय ने कहा- जो दिल यहां न मिल सके, मिलेंगे उस जहान में, उसका इंतजार सात आसमान के पार तक का था। मधुबाला कहती रही- उनकी तमन्ना दिल में रहेगी, शम्मा इसी महफिल में रहेगी और मरते दम तक वो एक और इंतजा़र में मुब्तिला रही। अगर बात करें 2003 में शोएब मंसूर वाले सुप्रीम इश्क़ अलबम की, तो उसमें ईमान अली कहती हैं- साहिबे आलम कहां रुके हो, कली तुम्हारी मुरझा रही है.. यानी अलग-अलग वक़्त और लोगों ने जब अनारकली को अपने-अपने अंदाज़ में पेश किया, तो भी उसके कैरेक्टर में बसे दर्द और इंतजा़र को अलग नहीं कर पाए। यही कामयाबी है अनारकली के इश्क़ की और इसी वजह से हमेशा कायम रहेगा इश्क़, मोहब्बत अपनापन, बेशक दुनिया कहती रहे कि वो हकीकत नहीं एक फ़साना भर थी।
(यह पाकिस्तान के सबसे महंगे म्यूजिक वीडियो में से एक था. संगीत और निर्देशन शोएब मंसूर का है और आवाज़ वहां की मशहूर गायिका शबनम मजीद की. नीचे बोल भी दिए हैं. फ़ारसी हिज्जों या शब्दों में ग़लती हो सकती है, वह मुझे नहीं आती.)
इश्क़ रो हसरत परस्तो हर परी
असफ़रोजे अर्श ओ तख्तो सरी
शर हे इश्क गरमान बेगोये
सद के योमत...
ये, दू, से, चो
शहंशाह ए मन, महाराज ए मन
ना ही तख्त ना ही ताज ना
शाही नाज़र ना धन
बस इश्क़ मुहब्बत अपनापन
जरा फ़रामोश करदीके ऊ या कनीज़ाज़
वले कबीरो नाज के मलिका ए शरद मलिका ए हिंदुस्तान
क़सम बादौलते हिंदूज़ीन ई तुर ना खाद शाद
क़सम बी जमाल ए अनारकली ईन शनीन खाद शाद
मुग़ल ए आज़म जि़ल्ले इलाही
महाबली तेरी देख ली शाही
ज़ंजीरों से कहां रुके हैं
प्यार सफ़र में इश्क़ के राही
गातें फिरेंगे जोगी बन बन
इश्क़ मुहब्बत अपनापन
जि़ंदगी हाथों से जा रही है
शाम से पहले रात आ रही है
साहिब ए आलम कहां रुके हो
कली तुम्हारी मुरझा रही है
जाते जाते भी गा रही है
बस इश्क़ मुहब्बत अपनापन.
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10 comments:
बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए.
"आंखों मे गुस्ताख़ी, प्यार कर लेने की। कुफ़्र सर लेने की। जिंदगी, इश्क़ में बसर कर देने की।"
इतिहास में ज़िक्र हो .. लेकिन क्यों ?.... मोहताज कौन है ? इश्क़ ? कि इतिहास ?
"इंतजा़र बहुत जानलेवा होता है, खा़सतौर पर उस वक्त़ जब सिर्फ एक फरीक़ इंतजा़र में हो और दूसरे को ये अहसास भी न हो कि उसे कहीं पहुंचना भी है।"
"अनारकली महज़ एक कि़स्सा नहीं है, एक कहानी नहीं है बल्कि एक जज़्बा है खुद को कुर्बान कर देने का।"
Beautiful post ... beautifully written ...
ये साहिब-ए-आलम हमेशा बेचारा, लाचार, हारा-मारा पिचका गुब्बारा ही क्यों होता है?
ख़ैर.
आपकी भाषा में जान है, मेमसाब. लगातार लिखा करो.
बहुत बेहतरीन पोस्ट...याद आता है मुग़ल-ऐ-आज़म फ़िल्म में जब बैंत-बाजी की महफिल में हारने के बाद शेह्जादा सलीम अनारकली को तोहफे में कांटे देते हैं तो वो कहती है" शुक्रिया साहिबे आलम....काँटों को मुरझाने का खौफ नहीं होता" इस एक वाक्य से अनारकली की सोच सामने आ जाती है....प्यार किया तो डरना क्या...कहना कोई आसन थोड़े न होता है...बहुत हिम्मत चाहिए उसके लिए....जो सबके पास नहीं होती.
नीरज
कहानी तो देखी भाली है ..अंदाजे बयाँ मगर खूब है.....
बस इश्क़ मुहब्बत अपनापन...aur kya...haan, yh ki fasane baaj dafa haqiqat pr sir chadkar bolte hain...
बहुत सुंदर!
बहुत ही खूबसूरत.
जि़ंदगी हाथों से जा रही है
शाम से पहले रात आ रही है
साहिब ए आलम कहां रुके हो
कली तुम्हारी मुरझा रही है
जाते जाते भी गा रही है
बस इश्क़ मुहब्बत अपनापन.
achcha likha hai
आज फिर प्रेम की गहराई
और ऊँचाई को एकबारगी
जगह दी है आपने इस पोस्ट में.
एक बहुचर्चित ,सर्व विदित चरित्र में
ज़ज्बे और ज़ज्बात के अनछुए पहलू
खोज निकालने की कामयाब कोशिश
असाधारण बात है ! अनारकली और
इंतज़ार के फासले के आईने में
तवारीख़ और दिलों में दर्ज होने वाली
मोहब्बत के महीन अन्तर का
अक्स बखूबी उभारा है आपने.
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शुक्रिया आपका
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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