ये बारिश कहीं और की थी...बर्फ़ भी शायद यहां की नही थी....किसी और जगह बरसना और बिखरना था इन्हें...। तो यहां क्यों आए....हां शायद कोई उधार बाक़ी रह गया था किसी का...ज़रूरी नहीं है कि भीगकर और छूकर ही कहा जाए कि मौसम किसी का उधार नहीं रखते...यूं भी समझ आ ही रहा है कि मौसम इंसान नहीं होते....बस मौसम होते हैं। कभी आने में देर भले ही कर दें लेकिन आने का वादा तो निभाते ही हैं।
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इस बार सर्दियों में बारिशें कम हुईं और शिमला जैसी जगहों पर मौसम की बर्फ़ के लिए भी लगभग तरसना ही पड़ा...अब जबकि लगने लगा था कि क्या बारिशें होंगी, क्या बर्फ़ गिरेगी, अचानक मौसम ने जता दिया कि ये उसकी अपनी मर्जी है कि वो कब कहां जाए।
बारिश की तस्वीर चंडीगढ़ में दफ़तर के बाहर हमारे सहयोगी रविकुमार ने ली और शिमला मे गिरी बर्फ़ की फ़ोटो एपी से ली गई है, फ़ोटोग्राफ़र हैं अनिल दयाल।
4 comments:
आपका लिखा आज फिर पढ़्ने को मिला और हम आज फिर दिल हार गये...
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चाँद, बादल और शाम
देर लगी आने में .पर आख़िर तुम आए तो .. बढ़िया फोटो है ..
मोसम अपना वादा निभाते हैं ......कहते हैं तो आते जरुर है .....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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