Monday, November 23, 2009
लीविंग यू लॉस्ट एंड लोनली...
जादुई शीशा तोड़ने के अपराध में तुम्हें कटघरे में नहीं खड़ा किया जाएगा...न ही ये जवाब मांगा जाएगा कि बिखरी किरचों से खुद को बचाने का हुनर तुमने मुझसे क्यों नहीं बांटा. ..तुम्हें माफ़ कर दिया जाएगा इस क्रूरता के लिए । पीली आंख और बेरौनक चेहरे के साथ अकेले न्रत्य करते रहने की यातना के बीच ही मैंने शीश्ो का खाली फ्रेम उतारकर नीचे रख दिया है...। तुम्हारे साथ रहते हुए जीवित ही स्वर्ग के द्वार तक पहुंच जाने की चाह को भी सहेजकर रख देने से मुझे गुरेज नहीं है...। मैं एक बार भी तुम्हें शर्मिन्दा नहीं करूंगी वो सब याद दिलाकर जिस तुमने काल्पनिक और बेमानी कहकर कल ही चिंदी करते हुए फेंक दिया था। बस एक बार सामने आकर कहो कि अर्थशास्त्र और सांख्यिकी की किताब के कौन से पन्ने पर तुमने अपने नफ़े का सवाल हल किया था...कैसे तय किया था कि हमारा नुकसान अलग-अलग हो सकता है, .ये कहना ही होगा तुम्हें, इसके बाद मैं मान लूंगी कि वाकई तुममें कुछ बेहतर पाने की चाह रही थी।
फोटो. गूगल से साभार
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12 comments:
उम्दा रचना , । बधाई
बेहतरीन लेखन...अवाक करता!
अन्दर धक् से ...सारी जमीने बंजर हो गई !
good one shayda
phir apni hi kahi baat yaad aagayi yahaan...
जोड़-तोड़ गुणा भाग यूँ करता है, क्यों करता है
बाज़ रिश्तों मे घाटा ही नफ़ा करता है ।
सब सवालों के हासिल न ढूंढा कर तू
छोड़ दे उस पे, कुछ काम ख़ुदा करता है
रचनात्मक दिमाग का हिज्र...
तुम्हे बाद दिनों के पढ़ रही हूँ इतिहास सबसे बड़ा मूर्ति भंजक है श्री लाल शुक्ल ने कहा है -तो फिर ये चिंता भी क्यों की उसे माफ किया जाएगा -
दिल को छू लेने वाली रचना बहुत सुन्दर सटीक सवाल शुभकामनायें
बढिया है.
नफे का सवाल.... आजकल तो दुनिया सिर्फ इसी पर अटक गई है बाक़ी सब तो रुख़सत हो चुका है यहाँ से .. मोहब्बत ख़ुलूस .. क्या कहते है वगैरह वगैरह .. he new economic policy... he he he..| जनाब निदा फाज़ली याद आते है ना .. दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है / सोच-समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला ...
यूँ ही लगा कि कुछ तो लिख देना चाहिए, आप जहाँ रहती हैं वहाँ की दुनिया इस खिड़की से जितनी दिख रही है, अच्छी है.
मातिल्दा पर बार बार जाकर देख रहा था कई दिन से कि लिखना क्यों बंद कर दिया। फिर अचानक आज इस ब्लॉग पर आया तो देखा कि रास्ता ही बदला है, कदमों की आवाज वैसी ही है। सवाल करने का आपका अंदाज़ किसी को भी लाजवाब कर दे। स्पोंटेनियस ओवरफ़लो ऑफ पावरफुल इमोशंस रिअली। वेरी ब्यूटिफुट वे टू एक्स्प्रेत ए रेस्टलेस्ट सोल।
मातिल्दा पर बार बार जाकर देख रहा था कई दिन से कि लिखना क्यों बंद कर दिया। फिर अचानक आज इस ब्लॉग पर आया तो देखा कि रास्ता ही बदला है, कदमों की आवाज वैसी ही है। सवाल करने का आपका अंदाज़ किसी को भी लाजवाब कर दे। स्पोंटेनियस ओवरफ़लो ऑफ पावरफुल इमोशंस रिअली। वेरी ब्यूटिफुट वे टू एक्स्प्रेस ए रेस्टलेस्ट सोल।
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