Monday, December 14, 2009

Go to the desrt and shout,


Who is indeed that I can say hello to? Mrs. Principal is dead, Haj Esmail is missing, my only daughter has fallen into the claws of a wolf....The cat died, coal tongs fell on the spider, and the spider died too...And now, what a snow is falling! Whenever it snows I get so depressed that I'd like to bang my head against the wall. The health insurance doctor said,'whenever you feel  sad and there's no one you can share your sadness with, talk to yourself loudly.' Meaning that you have to become your own agony aunt. He said,'Go to the desert and shout, swear at anybody you want to...'
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The health insurance doctor said,'swear loudly at anybody you want to, so that your head cools off.' And now my mouth is always full of curses. God only knows that i used to be a romantic; I used to like steams and trees and meadows and the moon in the sky.
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अवसाद और  अकेलेपन से मुक्ति पाने के लिए वह निटिंग करती है...लेकिन कितनी बार उधेड़ना और बुनना, इस मर्ज की  दवा हो सकता है..।.बे यारो-मददगार, एक औरत का होना और उस होने की यंत्रणा हर भाषा और हर मुल्‍क में लगभग एक जैसा ही क्‍यों है...। ईरानी लेखक Simin Daneshvar की शॉर्ट स्‍टोरी To Whom shall I say Hello? को पढ़ने के बाद इस अकेलेपन को और ज्‍़यादा गहराई से महसूस करते हुए ऊपर कॉपी किया कुछ लाइनों को।


;फोटो गूगल से।

8 comments:

अजय कुमार झा said...

एक ऐसा ब्लोग जिस पर आने वाला बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकता ...........मैं भी हुआ

सागर said...

तस्वीर बहुत पसंद आई... बांकी मेरी इंग्लिश माशाल्लाह है... इसलिए .... ) मुआफी...

उम्मतें said...

अवसाद ,अकेलापन और 'होने की यंत्रणा' का ताल्लुक इंसान होने से है इसलिए तमाम मुल्कों और भाषाओँ में यकसां हैं ! मेरे ख्याल से इस मामले में जेंडर की सरहदें खींचना भी सही नहीं है !

शायदा said...

@अजय जी शुक्रिया।
@सागर, हम सभी का तो एक जैसा हाल है।
@अली, इंसान होना ही सबसे बड़ी मुसीबत ठहरा, मैं स्‍त्रीवादी होकर नहीं कहती लेकिन यंत्रणा औरत के हिस्‍से हमेशा से ज्‍यादा रही है।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

उम्मतें said...

मेरी असहमति मुद्दे को लेकर जेंडर के दरमियान खींची गई सरहदों पर थी ! यंत्रणा ...अवसाद ....औरतों के हिस्से में ज्यादा है इससे इनकार नहीं ! मर्दों के मुकाबिल ज्यादा इन्सान होने की यह कीमत तो चुकानी ही है उन्हें ! अर्ज़ ये है की थोडा सा इंसान मर्द भी होते हैं इतना स्पेस तो देंगी ना ?

शायदा said...

@ali,
मर्द थोड़े क्‍यों पूरे इंसान होते हैं और पूरे स्‍पेस के ही हक़दार भी हैं।

उम्मतें said...

असहमत !