Monday, August 9, 2010

कि बिना मरे चुप रह सकूँ

 पुलिस तो होती ही ऐसी है, फलां देश के लोग ऐसे ही होते हैं, हिंदुओं में ऐसा ही चलता है, मुसलमानों में यही होता है, सेना के जवान हमेशा ऐसे ही होते हैं....अरे मीडिया का क्‍या है ये सब एक जैसे हैं, बहुत ख़राब होता है किसी भी चीज का जर्नलाइजेशन करना। ऐसा करते हुए हम हमेशा उन सबके साथ अन्‍याय कर रहे होते हैं जो भीड़ का हिस्‍सा नहीं होते। जो बहुत मेहनत करते हुए हजार तकलीफों को सहकर और कई बार बहुत सारे त्‍याग करने के बाद खुद को औरों जैसा होने से बचाए रखता है। मुझे मालूम है कि इस बात से ज्‍़यादातर लोग सहमत होंगे, लेकिन अफ़सोस किया जा सकता है उस स्थिति पर जहां मौक़ा मिलते ही सब फिर से चीजों को जर्नलाइज करते हुए देखने लगें।
मैंने अपनी पिछली पोस्‍ट में एक स्‍पेसिफिक हादसे का जिक्र किया जिसमें एक फेसबुक एंट्री शामिल थी। यह पूरी तरह से एक क्रूरता के जिक्र से उपजी व्‍यथा का मामला था। उसमें एक रिक्‍वेस्‍ट थी कि इस पोस्‍ट को अलग नजरिए और रोशनी में पढ़ा जाए। बहुत अफसोस हुआ ये देखकर कि उस रिक्‍वेस्‍ट को छोड़कर बाक़ी कंटेंट पर ख़ूब चर्चा हुई। कुछ लोगों ने इस मौके़ को लपका कि इस तरह मुझे तक़रीबन राष्‍ट्रविरोधी और सेना की मुखालफत करने वाला साबित कर दिया जाए, कुछ ने कोशिश की ये जताने की गोया वे सबसे बड़े वतनपरस्‍त हैं। कुछ ने मेरी संवेदनाओं को समझा और उस बच्‍चे के प्रति दुख जताया।
उस पोस्‍ट को पढ़ते हुए श्रीनगर में तैनात मेजर गौतम राजरिशी जो कि एक शायर और बहुत मकबूल हिंदी ब्‍लॉगर हैं, भी मुझ तक पहुंचे। उन्‍होंने जो कहा वो पिछली पोस्‍ट के कमेंट़स में दर्ज है। मेरी तकलीफ उस बच्‍चे को लेकर थी और मेजर ने बताया कि हादसा दूसरी तरह का था। बात खत्‍म हुई क्‍योंकि मेजर पर अविश्‍वास करने का कोई कारण था ही नहीं।
क्रूरता, अविश्‍वास, धोखा, नीचता और बदले की भावना, ये सारी चीजें किसी भी व्‍यक्ति में हो सकती हैं, होती भी हैं, इसलिए यहां भी मैं जर्नलाइनजेशन से बचना चाहती हूं। ये सब व्‍यक्तिगत दुर्गुण हो सकते हैं इसलिए किसी भी संप्रदाय, वर्ग, सेना या अन्‍य समूह को इसमें लपे ट लेना गलत है। 
एक बात और समझ आई इस पोस्‍ट के बाद कि आप जो कहना चाहते हैं उसे उसी संदर्भ में वैसा ही कोई समझ ले ये जरूरी नहीं है। बहुत सहज, सादी और मन की बात को भी लोग प्रोपैगैंडा, राष्‍ट्रविरोध और अन्‍य रंगों से रंगकर देख सकते हैं।
खै़र जिसे जो जैसे देखना है देखे, मैं अपने लिए ईश्‍वर से हमेशा ये मांगती रही जो आज फिर से मांगती हूं मेरे प्रिय कवि विजयदेव नारायण साही की लाइनें हैं......
परम गुरु
दो तो ऐसी विनम्रता दो
कि अंतहीन सहानुभूति की वाणी बोल सकूँ
और यह अंतहीन सहानुभूति
पाखंड न लगे।

दो तो ऐसा कलेजा दो
कि अपमान, महत्वाकांक्षा और भूख
की गाँठों में मरोड़े हुए
उन लोगों का माथा सहला सकूँ
और इसका डर न लगे
कि कोई हाथ ही काट खाएगा।

दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इसे दहाड़ते आतंक क बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिन्ता न हो
कि इसे बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा।

यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ।

नोट....दो साल की ब्‍लॉंगिंग में मैंने कभी अपनी पोस्‍ट पढ़वाने के लिए किसी से आग्रह नहीं किया लेकिन आज यहां एक आग्रह है कि जो रीडर्स यहां तक आए हैं वे अगले कुछ दिन और आते रहें, इस बहाने मैं कश्‍मीर पर कुछ और  एक सीरीज के तहत कहना चाहूंगी।
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15 comments:

सुज्ञ said...

वाह!!!

यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ।

स्पष्ठ अभिव्यक्ति!!

उम्मतें said...

"एक बात और समझ आई इस पोस्‍ट के बाद कि आप जो कहना चाहते हैं उसे उसी संदर्भ में वैसा ही कोई समझ ले ये जरूरी नहीं है।"

जब जागिये तभी सबेरा !

Anonymous said...

इसी बहाने आपके ब्लॉग तक पहुंचे और कुछ और पोस्ट पढ़ लीं. वर्ना मैं इसे सरसरी तौर पर देखकर ही साहित्य और कविता का बोरिंग ब्लॉग मनाता था. लेकिन अब तीन चार पोस्ट पढ़कर लगा की आपकी रचनाओं में काफी गहराई है. मीडिया में सभी बुरे नहीं हैं, पर वे खास कुछ कर भी नहीं सकते. ऊपर बैठे लोग अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों के दबाव में हैं, और लालची मालिकों ने सत्ता के चरण चाटने की राह चुन ली है. भारत एक बड़े षड्यंत्र का शिकार हो चुका है, मीडिया और सरकार कुछ शक्तियों के औजार ही रह गए हैं.

कंचन सिंह चौहान said...

आपके लेख हमेशा अच्छा लगते हैं शायदा जी....!

ये कविता भी औरा इस कविता की अंतिम पंक्तियाँ जो आपकी संवेदनाएं बयाँ करती हैं।

आती रहूँगी.... सिरीज़ पढ़ने....

गौतम राजऋषि said...

अभी-अभी पता चला आपके इस पोस्ट के बारे में और मैं सब काम-काज छोड़ कर यहाँ बैठा गया। आपकी पोस्ट से और आपसे किसी को शिकायत हुई, किसी को ऐसा कुछ लगा, जानकर हतप्रभ हूँ। आपने तो सबकुछ स्पष्ट कर दिया था।

आप इनसब बातों पर ध्यान मत दीजिये मैम। अहसास सच्चे हों तो दुनिया अपने-आप मान जाती है।

just be strong and carry on the way you are...will be waiting for your series on kashmir eagerly

शेरघाटी said...

परम गुरु
दो तो ऐसी विनम्रता दो
कि अंतहीन सहानुभूति की वाणी बोल सकूँ
और यह अंतहीन सहानुभूति
पाखंड न लगे।

दो तो ऐसा कलेजा दो
कि अपमान, महत्वाकांक्षा और भूख
की गाँठों में मरोड़े हुए
उन लोगों का माथा सहला सकूँ
और इसका डर न लगे
कि कोई हाथ ही काट खाएगा।

दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इसे दहाड़ते आतंक क बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिन्ता न हो
कि इसे बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा।

यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ।


मुझे भी ऐसे वर्ग-विभाजन से हमेशा कोफ़्त होती है कि फलां ऐसे होते हैं और फलां ऐसे !
आप बेहतर लिख रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती है कि आप एक जागरूक और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं जिसे रोज़ रोज़ क्षरित होती इंसानियत उद्वेलित कर देती है.वरना ब्लॉग-जगत में आज हर कहीं फ़ासीवाद परवरिश पाता दिखाई देता है.
हमने एक कोशिश की .आप भी पढ़ें गर फुरसत हो.
शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
और
शाहिद अख्तर
ख़ामोशी के ख़िलाफ़ http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_08.html

शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

एमाला said...

HAM AAPKE SAATH HAIN !! SAHI JI KI PANKTIYAN PAHLI BAR PADHI .HAM SAB KI YAHI DUA HAI.



दो तो ऐसी विनम्रता दो
कि अंतहीन सहानुभूति की वाणी बोल सकूँ
और यह अंतहीन सहानुभूति
पाखंड न लगे।

दो तो ऐसा कलेजा दो
कि अपमान, महत्वाकांक्षा और भूख
की गाँठों में मरोड़े हुए
उन लोगों का माथा सहला सकूँ
और इसका डर न लगे
कि कोई हाथ ही काट खाएगा।

दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इसे दहाड़ते आतंक क बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिन्ता न हो
कि इसे बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा।

डॉ .अनुराग said...

शायदा जी ...कोई भी संवेदनशील आदमी सात साल के बच्चे की मौत पे खुश नहीं होगा...सबके पास अपने हिस्से का सच है ,अपने हिस्से के तर्क ,अपने हिस्से का दुःख
....घिनोनी राजनैतिक इच्छायो के मकडजाल में इस्तेमाल होते बच्चे ओर औरते
है ...दीमक लगे लोकतंत्र की बिसात पर हर जान का इस्तेमाल एक प्यादे की
माफिक है .....सच तो ये है के इस संक्रमित समाज में संवेदनाये रिमोट से तय होती है ...और कभी कभी किसी विचारधारा को सपोर्ट करने की अधीरता में हम किसी एक द्रश्य के एक किनारे पे खड़े होकर पूरे परिद्रश्य का निर्णय घोषित कर देते है ...४ दिन पहले मेरी एक महिला... मित्र जो मीडिया में है (इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ) उन्होंने फेसबुक पर कुछ लिंक देकर कहा के देखो कश्मीर में सेना क्या कर रही है ....मैंने उनसे कहा था..दुर्भाग्य से सेना के पास अपना पक्ष रखने को कोई फेस बुक या यू ट्यूब नहीं है .....
वैसे .कल रात ही मै एन डी टी वी हम लोग की बहस बड़े गौर से सुन रहा था ....जिसमे एक कश्मीरी नौजवान आक्रोश में कहता है के जब वहां कश्मीरियों की जान जाती है तो क्यों दिल्ली या भारत के किसी कोने में उसके सपोर्ट में प्रोटेस्ट नहीं होता देश के बाहर होता है ....वाकई उनके सोचने की बात है क्यों नहीं होता.......तभी वहां खड़े दूसरे दर्शक ने कहा ....आप कश्मीरी पंडितो को ज़मीनी हक में शामिल करिए....उनके हक के लिए भी... लड़िये...मत कहिये के भारत अलग है फिर देखिये फिर कैसे लोग आपके साथ आते है
ऐसे हिस्से में जहाँ अफवाहे एक साजिश की तरह फैलाई जाती है ....नेगेटिव प्रोपोगेन्डा भी दुश्मन का एक हथियार है .....हर जान की एक कीमत है ....ओर उसका इस्तेमाल भी ..कोई भी सन्दर्भ अपने मायने रखता है ....ओर मीडिया की जिम्मेवारी अपेक्षाकर्त ज्यादा बढ़ जाती है .....आखिरकार वो मीडिया का एक पक्ष ही तो है जो पाकिस्तान के आतंकवादी का टेप सुनाता है .....जिसके मुताबिक कई जाने जानी चाहिये थी .....जिसको कश्मीर के समझदार नेता स्वीकारते है ...पर साथ में ये भी कहते है के अविश्वास के इस वातावरण में शायद कश्मीरी जनता इसको भी सच न माने .......कंडिशनिंग समाज ......दुःख .हताशा ....ओर उस गुस्से का इस्तेमाल करते देश द्रोही तत्व....ज़ेहन पर अपना कब्ज़ा जो जारी रखे हुए है .....उस मीडिया को कोई गाली नहीं देता ....
..हाँ यक़ीनन ये बात तो है के वहां की पोलिस ओर आर्मी को किसी मोब को कंट्रोल करने के लिए ट्रेंड भी करना होगा..उन आधुनिक चीजों का इस्तेमाल करने के लिए सामान भी मुहैय्या करना पड़ेगा ताकि किसी की जान न जाये .....ऐसी तरकीबे अब दूसरे देशो की पोलिस ओर मोब कंट्रोल टोली के पास है .....
ये एक जटिल विषय है निसंदेह कई निर्दोष जाने गयी.है .....जिनके दुःख की भरपाई नामुमकिन है ......मै ये भी नहीं कहता फ़ोर्स बेदाग़ है ...पर तमाम घटनाओं का दोष आर्मी को दिया जाए उससे भी मै इत्तेफाक नहीं रखता .......मेरे परिवार के दो लोग आर्मी में है...वे लोग जिनके साथ मै खेला कूदा बड़ा हुआ हूँ.......असहमतिया संवाद का एक जरिया है ....क्या हमें अपने दोस्त की हर बात के साथ इसलिए इत्तेफाक करे क्यूंकि वे हमारा दोस्त है .....आपके अगले लेखो का इंतज़ार रहेगा....शायद मेरी जानकारिया भी दुरस्त हो...शायद मेरे सोचने के रविये में कोई फर्क आये .....शायद उन हिस्सों तक पहुँच सकूँ जिनसे अब तक वाफ्ता नहीं हूँ....
वैसे आपको बता दूँ श्रीनगर के हॉस्पिटल में काम करने वाली अपनी एक डॉ दोस्त से ...तमाम बहसों के बावजूद मेरी दोस्ती अब तक बची हुई..है.....

राजन said...

shaida ji,apki pichlee post par prashan karne walo ne agar apko sena virodhi samajh liya{halanki mujhe aisa nahi lagta } to apne bhi jaldbaaji dikhaai aur prashan karne walo ko samvedna shunya aur itna nirmam ghoshit kar diya jinhe kisi bachche ke marne se koi fark hi nahi padta ho.phir bhi apki is post ne bahut see baatein clear kar di hai.ab ji ke blog par maine bhi is vishay me cmnt. kiya tha main maanta hun ki meri bhasha bhi kuch talkh ho gai thi.uske liye kshma.

राजन said...

ek baat aur main nahi maanta ki apki wo post kisi propegenda ka hissa thi.kam se kam ek mahijla ke baare me to aisa bilkul nahi socha ja sakta.mujhe laga ki wo post jaldbaaji me likhee gai hai.aur phir wo requst.khair...yadi meri kisi bhi baat se apko dukh pahuncha ho to uske liye punah kshama.mera irada wo bilkul nahi tha.

Satish Saxena said...

ईमानदारी को अवश्य पढ़ा जाएगा , जाना चाहिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सार्थक पोस्ट हैं ...पिछली पोस्ट भी पढ़ी ....जो सामने आता है वही सच लगने लगता है....लोग भानात्मक आक्रमण भी करते हैं यह आपकी पोस्ट और गौतम जी की टिप्पणी से पता चला ...

Parul kanani said...

हम हमेशा उन सबके साथ अन्‍याय कर रहे होते हैं जो भीड़ का हिस्‍सा नहीं होते। जो बहुत मेहनत करते हुए हजार तकलीफों को सहकर और कई बार बहुत सारे त्‍याग करने के बाद खुद को औरों जैसा होने से बचाए रखता है।
shayda ji kisi behas mein nahi padna hai..abhi soch rahi hoon..aap continue kariye..aati rehungi!

गौतम राजऋषि said...

ma'm....time for a new post now plzzzz

Anonymous said...

Love...

- SB and SA
from your Himalayas