मैं किसी बहस का हिस्सा नहीं हूं। मुझे किसी तरफ खड़े हुए भी मत देखिए। मैं सिर्फ एक बच्चे के बारे में बात करना चाहती हूं। सारी बेहयाई, सारे षडयंत्र, सारी राजनीति और सारे उन्माद के बीच मैं उस बच्चे के बारे में बात करना चाहती हूं जो सात बरस का था। क्या उसे इस उम्र में इस तरह मर जाना चाहिए था। ठीक है मर जाना ही हम सब की नियति है तो क्या इस तरह मर जाना वो अपने भाग्य में लिखवाकर ले आया था....किसने लिखा था उसका ऐसा भाग्य....जवाब ढूंढते हुए मुझे अपने घर के उन दो बच्चों का चेहरा याद आता है जो पिछले महीने ही सात बरस के हुए हैं। मैं बुरी तरह डर गई हूं, उन सारे बच्चों के लिए जो क्रिकेट खेलने के लिए निकलते हैं, क्या हमें उनका घर से निकलना बिल्कुल बंद कर देना चाहिए। कम से कम हमारे देश के जिम्मेदार नेताओं का तो यही कहना है कि अगर जान बचानी है तो बच्चों को घर से बाहर न निकलने दो....।
ये एक चश्मदीद का बयान है फेसबुक पर.... सुरक्षा बलों द्वारा मार डाले गए बच्चे की तस्वीर को यहां लगाने का साहस मुझमें नहीं है।
i am from batamaloo, i eyewitnessed the death of a 7 year old kid yesterday, here in batamaloo! he was coming back from home, after playing cricket with his friends in a nearby ground, while i was as usual collecting strings for my news re...p......ort. suddenly a group of crpf men came in a mobile bunker and started thrashing me, even broke my camera! fired indiscriminately over the residential buildings there! i was hurt! blood dripping from my head! i ran for my life and at that fateful minute, that 7 year old boy passed through that area. the dogs ran after him! and brought him down by a blow of gun on his head! he was beaten to pulp! i cried for help! i cried someone please save us! we are being murdered! no one came out! who would want to risk his life? i tried very hard! but i could barely move! when they thought it was not sufficent, they stick a cane deep down his throat till he died! ya allah! how did i let them do it! even after that little kid, someones son! someones brother died! it didn't satisfy those b------s! please mind my language! those b------s stood up on his chest for 10 minutes kicking his head as if it was a football! it was too much! i went and clashed with them! i was shot in the leg! then they fled away! as soon as they left thousands of people gathered at the place! i held him! i held him in my arms! i could see clearly the bruises on his chest and his broken ribs! his deshaped and cut mouth! his hands pierced with pens and sharp objects! i couldnt do anything! this thought will haunt me for the rest of my life!...Sabeeqa Nazir
नोट. क्रप्या इस पोस्ट को उसी रोशनी में पढ़ा जाए जिसमें लिखा गया है, पाकिस्तान क्या कर रहा है, कश्मीर में पत्थर फेंकना एक व्यवसाय है, प्रदर्शनकारी स्पॉन्सर्ड हैं और कश्मीरी लोग इन दिनों जमकर तोड़फोड़ और आगज़नी रहे हैं, ये सब जानने के बाद भी मैं जानना चाहती हूं कि क्या इस बच्चे को इस तरह मर जाना चाहिए था ...?
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42 comments:
ये घटना मुंबई मैं होती तो शायद इतनी बड़ी घटना नहीं होती पर लोगो का विरोध एकदम सही है आरोपी को सजा मिलनी चाहिए लोगो को इतना ध्यान रखना चाहिए कि सरकारी सम्पति का और किसी व्यक्ति का कोई नुकसान नहीं हो.
बहुत दुखद घटना है....
पहला खयाल यही आया कि ये प्रभा कोई फाल्स आई०डी होगी और वही हुआ। कोई प्रज्ञावान व्यक्ति इसे सही करार नही दे सकता और जब एक महिला की लेखक महिला की तरफ से ये प्रतिक्रिया मिले तो ये लाज़मी ही है।
जिन भी हालातों में ये हुआ, गलत हुआ।
आपका लेख खुली सोच के साथ लिखा गया है।
हौलनाक !
thanks Kanchan.
अच्छा प्रोपेगेंडा है भारत और सेना के खिलाफ. इसी तरह की कहानियों के माध्यम से अलगाववादियों के प्रति सहानुभूति और भारत को विलेन बनाया जाता है. आपने फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी, और बिना सुबूत औरसच्चाई की छानबीन के उसपर पूरी तरह विस्वास कर लिया, की आप सुरक्षाबलों पर सवाल उठाने लगीं?
ज्यादा सम्भावना तो यही है की यह प्रोपेगेंडा का हिस्सा है, कहानी पूरी तरह काल्पनिक हो सकती है. जैसे आप खालिस्तान सम्बन्धी प्रोपेगेंडा साइटों पर जाएं तो वहां लिखी कहानियों से लगेगा की भारत में सिख नरक से बदतर हालातों में रह रहे है, उनसे गुलामों की तरह व्यव्हार किया जाता है, उन्हें कोई अधिकार, शिक्षा, रोज़गार वगैरह हासिल नहीं हैं. ऐसा ही कश्मीरी प्रोपेगेंडिस्ट करते हैं, यही माओवादी सलवा जुडूम के खिलाफ करते हैं.
और उन लोगों की क्या कहें, जो भावुक शब्दों के पीछे खोकले तथ्यों और प्रोपेगेंडा के पीछे नहीं देख पाते? कमेन्ट करने वालों में ही कई ऐसे हैं. सही कहा गया है, भावनाएं भड़का कर आप लोगों से जो चाहें करा लें, ज़्यादातर लोग बिना सोचे समझे आपके पीछे आ जायेंगे.
@प्रभा जी
कंचन की बात के बावजूद मैं ये कमेंट प्रभा के नाम ही इसलिए दे रही हूं क्योंकि फिलहाल उनकी पहचान यहां यही है। तो प्रभा जी अगर ये घटना मुंबई, दिल्ली या चंडीगढ़ की होती तो कई दिन प्राइम टाइम से हटती नहीं। आपने पढ़ा उसके लिए शुक्रिया।
@ab ..आपसे यही अपेक्षा थी। प्रोपेगैंडा और सहानुभूति के तरीकों पर आप चिंता कीजिए, मुझे तकलीफ हुई और इस नाते मैंने उसे शेयर किया। आप अपने एजेंडे पर कायम रहें, शुभकामनाएं। हां, एक बात और वो बच्चा सचमुच मरा है और घर के अंदर मरा नहीं पाया गया आप जाकर जांच लें मन हो तो।
इस पोस्ट के पीछे प्रोपेगेंडा ही काम कर रहा है. खैर लगे रहिये भारत के खिलाफ, कश्मीर कभी न कभी आज़ाद हो ही जायेगा. तब आपको हम बधाई देंगे.
एबी जी, इस पोस्ट के पीछे क्या मनोदशा थी उसे पहचान सकने की कूवत ईश्वर आपको बख्श देता तो क्या बात थी। आपको आदत है एक विषय को रबर की तरह खींचकर अपना एजेंडा दूसरों पर लादने की, क्रप्या होशियार रहें यहां आपकी किसी मंशा को परवान चढ़ने नहीं दिया जाएगा। किसी दुख को दुख समझ लेने की एक सहज भावना जिनमें है वही हमारे साथ रहें तो बेहतर है। हां आपने जो शब्द मेरे ब्लॉग पर लिखे हैं वे वास्तव में अशोभनीय हैं, दोबारा क्रप्या सोचसमझ कर शब्दों का इस्तेमाल करें।
बहुत आश्चर्य है कि लोग इन बातों पर विश्वास कर रहे हैं. इस बयान में जो भी बातें लिखी गयी हैं उनका मकसद सिर्फ भारतीय सैनिक और अर्ध्सेनिक बलों को बदनाम करना है. अगर इन जनाब ने ये कहा होता कि एक मासूम बच्चा गोलीबारी में मारा गया तो ऐसी बातें सच है क्योंकि कश्मीर में अलगाववादी तत्त्व मासूम बच्चों को ढाल बना रहे हैं. लेकिन जिस तरह का वर्णन इस बयान में किया गया है वो सिर्फ और सिर्फ भावनाओं को भड़काने और सेना को बदनाम करने के लिए किया गया है. इतनी हैवानियत तो भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में भी नहीं दिखाई थी . ये पाकिस्तानी सेना के बारे में दिया गया बयान होता तो माना जा सकता था पर भारतीय सेना या अर्ध्सेनिक बालों का कोई जवान ऐसा नहीं कर सकता. इस तरह कि बयानबाजी पुराना पाकिस्तानी तरीका है भारतीय सेना को बदनाम करने का. इस तरह कि बातों पर कोई ध्यान ना दे.
और मेडम आप खुद भी अति भावुकता वादी व्यव्हार कर रही है. आपके प्रोफाइल में आपका निवासस्थान चंडीगढ़ लिखा है और आप लिखती हैं कि आपको अपने बच्चों को घर से बाहर भेजने में भी डर लग रहा है. क्या आपकी नजर में चंडीगढ़ में भी मुस्लिम अलगाव वादी सक्रिय हैं. मेरी बातें आपको बुरी लग सकती हैं पर अलगावादियों के द्वारा फैलाई जा रही झूटी बातों के जाल में ना फसें. जरा पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के बारे में नेट पर आ रही ताजा जानकारी भी पढ़े जिसने अमेरिका को भी हिला के रख दिया है कि किस तरह से ये पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी भारत को बर्बाद करने कि साजिस रच रही है.
@vichar shuya jee
आपके पास यदि कोई और विचार बाकी हो तो क्रप्या भेजें।
दुखी तो मन बहुत हुआ यह पोस्ट पढ़कर, क्योंकि मेरा बच्चा अगले साल सात का हो जायेगा...और यह सोचकर मैं सिहर उठा कि आखिर एक साल बाद वह ऐसी कौन सी जगह क्रिकेट खेलने जाएगा, जहाँ खाकी वर्दी के लोगों का खौफ नहीं होगा....मेरे पास इतना बड़ा घर भी नहीं है कि वह घर के भीतर ही क्रिकेट खेल पाए....लेकिन एक बात का शुक्र और मनाया कि खाकी वर्दी वालों की उस वहशियाना तश्द्दत के बाद वह मासूम जिन्दा नहीं रहा....आखिर उस बच्चे को मैं कैसे समझाता कि 'बेटा, घर से बाहर जाकर क्रिकेट खेलना गुनाह नहीं है...और यह खाकी रंग दरिंदों के लिए सरकारी तौर पर मुकर्रर नहीं किया गया है..!! बस इतना कहूँगा...बेटा मुझे मुआफ कर देना..!!
श्यादा जी, इसे अपने ऊपर न लें. यह प्रोपेगेंडा ही है. कोई बिना सुबूत दिखाए इस तरह के आरोप सेना पर लगाए तो क्या हम यूँ ही मान लेंगे? विचार शुन्य की तरह मेरा भी कहना है की अगर गोली लगने की बात होती तो एक बार मानी भी जा सकती थी. पर सेना के लोग एक राह चलते बच्चे को यूँ ही पकड़कर उसे सड़क पर यातना देने लगेंगे, पीटेंगे, वह मदद के लिए चीखेगा फिर भी ......उसे काटेंगे, उसके शरीर को नुकीले औजारों से छेदेंगे, खून बहाएँगे, सीने पर खड़े होकर सब मिलकर उसके सर पर कई मिनटों तक लगातार फूटबाल की तरह किक करेंगे, उसकी हड्डियाँ तोड़ेंगे, उसके जबड़े चीर देंगे, जब वह मर जाएगा तब उसकी लाश छोड़कर चले जाएंगे. हद है!
फेसबुक, ऑरकुट, ब्लोग्स, यूट्यूब, फोरम पर ऐसी हजारों कहानियां बिना सन्दर्भ के घूम रही हैं. ऐसी कहानीया बना लेना क्या कठिन है? भावनाएं भड़काना काफी सरल है, यह प्रोपेगेंडा के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है. खैर अब आपकी मर्ज़ी, इसे व्यक्तिगत रूप से लें. या एक ऐसे व्यक्ति की आलोचना मानें जो घटनाओं को वस्तुगत और तार्किक नज़रिए से देखता है, न की भावनाओं से.
आप महिला है तो यक़ीनन संवेदनाएं आपमें अधिक होंगी. पर हम तार्किकता, वस्तुपरकता और को तो नहीं छोड़ सकते न. खैर सब कहने सुनाने के बाद यह भी हो सकता है की आपके पास पुख्ता सन्दर्भ हों, और पूरे सबूतों के साथ आप अपनी बात रख रही हों. अगर ऐसा है तो इस ज्यादती को अदालत, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों तक ले जाना चाहिए.
और अगर पुख्ता सन्दर्भ न हों, बिना सुबूत आरोप लगाए जा रहे हों तो इसे भारत विरोधी प्रोपेगेंडा ही माना जाना चाहिए.
thanks ravi for understanding.
@ विचार शून्य भाई ,
एबी को जानता नहीं पर आपसे संपर्क है इसलिए कह पा रहा हूं कि...
ब्लागर नें पोस्ट के नीचे बहुत साफ़ सुथरा नोट लगा रखा है क्या उसकी रौशनी में भी टिप्पणी किया जाना मुमकिन नहीं रह गया है ?
मेरे ख्याल से आप पोस्ट को उसकी सम्पूर्णता में पढकर कमेन्ट करते आये है इसलिए उम्मीद पाल रखी है!
@ab ...मुझे जानकारी है कि ऑरकुट से लेकर फेसबुक और ब्लॉगस तक पर नफरत फैलाने, अफवाहें और भ्रामक बातें फैलाने वाले लोग मौजूद हैं। संभव है कि मेरे पोस्ट में शामिल बयान में भी तकलीफ और संवेदनाओं की मात्रा अधिक हो, लेकिन मेरा सवाल सिर्फ ये है कि क्या उस बच्चे को इस तरह मर जाना चाहिए, आप देख सुन रहे हैं कि इन दिनों जो भी घाटी में हो रहा है उसमें क्या कुछ शामिल है। मेरा मंतव्य अब भी आपसे दूर है, मुझे दुख है इस बात का।
किसी भी बच्चे की मौत जायज़ नहीं हो सकती. बच्चा अगर बीमारी, दुर्घटना या लापरवाही से मरे तो भी यह शर्म की बात है. और अगर ऐसी मौत तो बच्चों तो क्या दुश्मन के लिए भी हम नहीं चाहेंगे. किसी बच्चे को इस तरह नहीं मरना चाहिए.
पर
ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं, न कोई बच्चा सेना के हाथों पीट पीट कर मारा गया है. मैं कहता हूँ बच्चा काल्पनिक है, क्योंकि यह घटना काल्पनिक है. इसका आधार केवल एक फेसबुक पोस्ट और उसमे लगी फोटो है, जो क्षत-विक्षत बच्चे की लाश की है, ऐसी फोटो गूगल से कबाड़ना कठिन नहीं है. न तो इसका कोई विश्वसनीय सन्दर्भ है, न कोई सुबूत दिया गया है, आखिर कैसे भरोसा कर लें?
ab jee चलिए खत्म कीजिए बहस को। उस बच्चे की रूह को भी तकलीफ हो रही होगी। वैसे आज एक रिपोर्ट मैंने टीवी पर देखी जिसमें कश्मीरी बच्चों का जिक्र था, संभवत उसमें भी इस बच्चे का जिक्र था। मुझे विश्वास है कि आप एक अच्छे इंसान हैं और संवेदनाएं रखते हैं।
कश्मीर का यह विवरण आपके एक पाठक को प्रोपेगैंडा लगा और इसके विपरीत काफी लोगों के मन को छू गया। हम जब कौम, राष्ट्र, समुदाय और गिरोह बन जाते हैं, तब इंसानियत भूल जाते हैं। इस क्रॉस फायरिंग के शिकार अबोध लोग ही होते हैं। इंसानियत दुनिया का सबसे बड़ा मूल्य है, अपने से छोटे मूल्यों के हाथ अक्सर हारता है। जो इसे अपने लिए स्वीकार कर चुके हैं, वे इसे छोड़कर जाएंगे तो नहीं।
कश्मीरी बच्चों का ज़िक्र एक अर्से से हमारे मीडिया में नहीं है। यह एलिएनेशन है। हम संवेदनाशून्य हैं।
हाँ चंडीगढ़, मुम्बई या दिल्ली में भी कई देश और समाज हैं। खबर झोपड़पट्टी से आती तो उसका असर अलग होता और ऊँचे मकानों से आती तो अलग होता।
पूरी पोस्ट पढ़ी और तमाम टिप्पणियां भी। जिस सात वर्ष के बच्चे की मौत का जिक्र हो रहा है...ये घटना जहां मैं हूं इस वक्त बस कुछ ही फ़लांग की दूरी पर हुआ। उस कालोनी में अर्धसैनिक बल की टुकड़ी पत्थर बरसाने वालों को भगाने को आयी थी।...और गली में सबकुछ शांत हो चुका था। ये बच्चा अपने घर से निकल कर दौड़ता हुआ सामने पड़ोस के घर में जा रहा था कि अचानक से सड़क पर गिर पड़ा और जिन अर्धसैनिक बलों पर ये इल्जाम लगाया जा रहा है, उसी टुकड़ी के एक सिपाही ने दौड़कर उसे गोद में उठाया, उसे पानी पिलाया और उसी टुकड़ी की गाड़ी ने तत्काल उस बच्चे को अस्पताल पहुंचाया, जहां उस बच्चे की मौत हो गयी। यकीन मानिये उसे किसी ने कोई चोट नहीं पहुंचायी। एक और घटना का जिक्र करना चाहता हूं जो आज सुबह ही मेरे समक्ष हुई है। एक बुजुर्ग अस्पताल में बिमारी से दम तोड़ते हैं। घर वाले अस्पताल से उनका जनाज लेकर घर की तरफ आ रहे हैं कि कुछ सरफिरों ने अफवाह फैला दी की बुजुर्ग पुलिस की लाठी खाने से मर गये हैं। बस फिर क्या था....वही हंगामा...indians dog go back के नारे लगने शुरू हुये और पत्थरों की बारिश।
विश्वास कीजिये इन पत्थरों की बारिश में जवानों के फूटते सर और जख्मी पैरों को देखने के बाद भी जो संयम भारत के सुरक्षा-बल की टुकड़ी दिखला रही है उसका कोई सानी नहीं है।
जहां तक इस सात वर्षिय बच्चे की मौत की प्रश्न है तो यहां तमाम लिखने वालों में इस घटना को मुझसे ज्यादा करीब से तो किसी ने देखा नहीं होगा।
कुछ मौतें शर्तियां तौर पर हुई हैं विगत पचपन दिनों के कश्मिर के इस बिगड़े हालात मे सुरक्षा बलों की गोलियों से, लेकिन इन मौतों में कोई बच्चा नहीं है। फेसबुक पर जिन भी महाशय ने इस घटना को विभत्स रूप देकर लिखा है, जाहिर है उसने कभी एक महीने पहले इन्हीं पत्थरबाजों के बरसते पत्थर से एक मां की गोद में अस्पताल जाते छः महीने के शिशु के सर पर पत्थर गिरने से हुई मौत का जिक्र करना गैरजरूरी सम्झा....
दुख होता है इन प्रतिक्रियाओं को पढ़ कर ये सुरक्षाकर्मी जो कश्मीर से दूर, देश के जाने किस-किस कोने में अपने ऐसे ही बच्चों को बस अपनी पत्नि के सहारे अकेले छोड़े हुये हैं...उनके ये ही देश वासी उनके बारे में ऐसे ख्यालात पाले हुये हैं। फेसबुक पे घट्ना का विवरण ही क्या उसके झूठ का परिचायक नहीं है? क्या सचमुच कोई इतना बर्बर हो सकता है एक छोटे बच्चे के साथ?
हद हो गयी...
मेजर राजरिशी इस पोस्ट को लिखने का एक फायदा ये हुआ कि आप यहां तक आए। यूं दो साल की ब्लॉगिंग में आप इस तरफ कभी तशरीफ लाए नहीं। खैर, मैं और इस पोस्ट पर कमेंट करने वाले लोग कश्मीर में नहीं हैं, इसलिए हम उन खबरों पर भरोसा करते हैं जो वहां से आती हैं, जो दिखती हैं और छपती हैं। यक्रीनन मैं फेसबुक से ज्यादा आपकी बात पर भरोसा करूंगी। अगर आप इस घटना के चश्मदीद हैं तो किसी दूसरे चश्मदीद की बात पर विश्वास करने का मतलब ही नहीं।
मेरा सरोकार सिर्फ उस बच्चे की मौत से था अगर वो महज एक घर से दूसरे घर तक जाते हुए ही गिर कर मर गया है तो ये उसका भाग्य रहा होगा, दुखद है ये भी।
सुरक्षा बलों के त्याग बलिदान के अलावा उन सब मुदद़ों पर भी फिर कभी बात होगी जो निरंतर चिंता का विषय हैं।
मेजर राजरिशी एक बात और ये समझने में आप गलत हैं कि लोग वहां तैनात सैनिकों और अन्य सुरक्षा बलों के बारे में संवेदनशील नहीं हैं। मैं खुद वहां जाकर चीजें बहुत करीब से देख जानकर आ चुकी हूं। जो अपने घरबार से दूर वहां तैनात हैं उनकी और नागरिक, सबके लिए हमारी संवेदनाएं जाग्रत हैं।
Major Rajrishi...i was readin this before ur comment..just sharing this wd u ...probably author is talkin about same child.
http://www.outlookindia.com/article.aspx?266544
and, worst of all, an eight-year old boy has been beaten to death. The police issue a statement saying that he died in a stampede of protestors, but there are eyewitnesses who say that he, cricket bat in hand, was raising slogans for azadi and was not quick enough to run away when the CRPF charged. Several jawans beat him, dragged him into their vehicle, and then decided to dump him on the side of the road. He died, not long after, in hospital. Clubbing an eight year-old boy to death? What kind of harm could he have done, mighty with his cricket bat? (Ah yes, perhaps he too picked up and slung stones at the police.)
beleive me ma'm and thats all i can say...because whatever i say will be taken as speaking in favour of security forces as i am part of them.i dont deny that attrocities have not be done.there are cases where security forces have been cruel, but this particular incident is certainly not one of them.
when a mob of thousand and more are stone pelting at you, believe me you just dont want to be there.thse police and crpf guys inspite of getting plastred by these stones they try to chase them with their sticks, because they have orders not to fire at the crowd come what may...and civil people get hurt in that process and a few of them die.all thirty plus deaths so far ocuured have all been because of bullet injuries and none out of any beating as your reffered reports are saying...
with all due respect ma'm, its very very difficult to listen to the slogans being shouted by your own countrymen that "indian dogs go back"....just three days back i was standing near a crowd when one of the youngsters came in front of me, held my uniform and shouted at my face "you indian dog go back"...i felt like kicking him hard, instead i smiled at him and hugged him...he went back so embarassed...it took all my patience to keep myself calm n composed...
anyway, thsese arguments will continue and yet no one will understand a kashmiri's plight...
I trust u Major.
thank you ma'm...thank you so much
मेजर ,
हम तो आप पर हमेशा से ही भरोसा करते आये है ..... कोई शक या सवाल ??
आपके और अपने बाकी सभी फौजी साथीयो के जज्बे को सलाम करता हूँ !!
आपके मार्फ़त ही सही पर हो सके तो उन सब तक मेरा यह सलाम जरूर जरूर पहुंचा दीजियेगा !
जय हिंद !!
शायदा जी ,
नमस्कार !
आपके बारे में और आपके ब्लॉग के बारे में मेजर साहब की पोस्ट से मालूमात हुयी !
मैं आपकी गलती बिलकुल भी नहीं मानता ........कोई भी संवेदनशील बन्दा इसी तरह अपनी राय फ़ौज के बारे में बदल लेगा जब जब वह इस तरह के झूठे प्रचारों के रूबरू होगा ! यह प्रचार किये ही इस लिए जाते है ........और वह भी इस खूबी से कि लोगो उस को सच मान अपनी प्रतिक्रियायाँ दें और पुरजोर तरीके से दें ताकि फ़ौज का मनोबल टूटे ! इस लिए हम सब के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम सच और झूट की पहेचान जितनी जल्दी कर लें उतना अच्छा है !
गौतम , कोई कुछ भी कहता रहे मैं इतना जानती हूं कि हमारी सेना में गौतम जैसे लोग हैं ,मुझे तुम्हारी बात पर १००% यक़ीन है
सेना के जवान जिन तकलीफ़ों में होते हैं ख़ास तौर पर emotionally उस का अंदाज़ा भी हम नहीं लगा सकते ,अगर हम उन का साथ नहीं दे सकते तो कम से कम इल्ज़ाम तो न लगाएं
जिन के घर वाले इस महौल में जुदा हो जाते हैं उन की तकलीफ़ों का भी अंदाज़ा है हमें ,बच्चे तो वैसे भी मासूम होते हैं उन की तकलीफ़ इन्सान को दुख ही पहुंचाएगी न कि क्रूर बनाएगी
लेकिन सेना के जवान लोगों को अस्पताल पहुंचाते हैं मारते नहीं हमारी भारतीय सेना ऐसा कर ही नहीं सकती
सलाम है सेना को ,पुलिस को
१९४७ में प्रारम्भ हुई त्रासदी १९८८ में क्षद्म युद्ध में बदल दी गई . क्या यही जन्नत है .
Sayda ji...Internet ek khula munch hi to iska matlab yeh nahi ki aap bina prove ke kuch bhi likh de..aapki emotions smjhe jate hai n mje nai lagta ki koi bhi mansik roop se normal insaan is incident se hurt hue bina rah payega...per aap Indian army ke jawano pe haiwan hone ka ilzam laga rahi hai n koi proof bhi nahi de rahi hi..to mai samjhta hn ki is blog per comment kerne wale bahut sabhya samaj se hai jinhone koi upsabd nahi kahe...
aap "ab ji" ko apne emotions samjhnae ki kosis ker rahi hai n wo aapko aapki responsibilty..hmare jawan kasmir me muskil conditions ka samna ker rahe hai n aise mauke pe hmare sath ki zarorat hai, thik waise hi jaise ki jab aap kisi kathin samsya se gujri hongi aur aapke parents n family member ne apke ser per haath rakhker kaha hoga ki "sab thik ho jayega"..naki ek open forum me unper bebuniad ilzam lgane ka..news me suna ki jawano ko kasmir pahunchte hi duty per laga dia gaya n 36 ghanto tak khana bhi nahi nasib hua...acha hota ki aap is bare me kuch likhti per sayd wo aapke emotions ke scopee nahi aata..
yeh ek political matr hai n political matter me emotions nahi visions important hote hai..aapke emotions ki kadar kerta hn but acha hoga ki aap apne emotions ko personal hi rahne de aur is tarah se "flaunt" kerne ki kosis na kare..baht taklif pahuchti hai at least unhe jo apni respnsbilty nibha rahe hai..jaise ki 36 ghanto se bhukhe hmare jawan
वो मेरा ऐतबार कर लेते
जो मैं इतना खरा नहीं होता...
वो मेरा ऐतबार कर लेते
जो मैं इतना खरा नहीं होता...
सचमुच...है तो मुश्किल ...मेज़र की बातों पर यकीन करना...
लेकिन सिर्फ उन बातों पर...जब वो एक साधारण से मतले पर एक लंबा सा ऊऊफ़्फ़्फ़ कहते हैं...
इसके सिवा उनकी किसी भी बात पर शक करना..समूची इंसानियत पर शक करना है.....
और पूरी आदम जात पर शक करने की जुर्रत कम से कम इस नाचीज़ में तो नहीं है...
भले ही गौतम अगर किसी बात का चश्मदीद गवाह नहीं है..तो भी नहीं....
और ज़्यादा साफ़ कहें तो हमारे हिसाब से मेज़र गौतम को किसी भी किस्म की शक की निगाह से देखना....सीधे सीधे ..''पाप'' की श्रेणी में आता है...
मेरी संवेदनायें कहीं मर तो नही चुकी, बस कभी कभी ताज्जुब कर लेता हूँ इस बात पर कि काश्मीर में मरे या मारे गये बच्चे और अफगानिस्तान में मारे जा रहे बच्चों में तो फर्क नही किया जा रहा। ईरान में किसी महिला को एक छोटे से कसूर पे पत्थर से मारने की सजा ज्यादा बर्बर है या दुनिया के किसी कोने में किसी मासूम के साथ की गयी जबरदस्ती।
कई बार ये भी समझ नही पाता कि भीड़ में गोली चलाने से ज्यादा लोग मरते हैं या किसी सोशियल नेटवर्क की साईट में अफवाह फैलाने से। समय से पहले कोई भी मरे दुख होता है और अगर वो बच्चा हो तो कुछ ज्यादा लेकिन जब संवेदना को नमक मिर्च के साथ व्यक्त किया जाता है तो सिवाय आक्रोश के कुछ नही कर सकता।
क्या यह सम्भव नहीं कि वह बच्चा भी पत्थर फ़ेंक रहा हो और जब सेना ने भीड को भगाया तो वह गिरकर कुचला गया? ( यह बिल्कुल असम्भव नहीं है। मैंने एक लगभग दो या तीन साल के बच्चे को भी अन्य उपद्रवियों की देखादेखी पत्थर फ़ेंकते हुए देखा है। यह बात और है कि वह पत्थर अधिक दूर नहीं गया।)क्या सेना को अत्याचार करने के लिए सड्क ही मिली थी? जितना भयंकर काम आपके अनुसार हुआ यदि वह करने में सेना को आनन्द आता है तो वह छिपकर यह कर सकती थी। दिन रात पत्थर खाकर भी क्या उन्हें इतनी समझ नहीं आई होगी कि ऐसा करने से और पत्थर पडेंगे। कितने भी क्रूर व्यक्ति को पत्थर खाना पसन्द तो नहीं ही होगा।
एक और बात, लेखक को केवल एक गोली मारकर उन वहशी सैनिकों ने क्यों छो्ड दिया होगा? क्या उसके मुख में भी बन्दूक डालने का, हड्डियाँ तोडने का आनन्द नहीं लिया जा सकता था?
सैनिक भी दूध से धुले नहीं हो सकते, विशेषकर तब जब उनपर पत्थर बरसाए जा रहे हों। किन्तु इस कहानी में इतने छेद हैं कि यह अविश्वसनीय बन गई है। थोडी सी कम बर्बरता बताई होती या कहा गया होता कि यह काम छिपकर किया गया तो विश्वास हो जाता।
शायद आपको बुरा लगे किन्तु कम से कम यह रपट तो नकली ही लगती है। जिस भी कारण से उस बच्चे की मृत्यु हुई हो, मुझे बेहद दुख है।
यदि यह घटना सच में घटी है तो यह कृत्य करने वालों को कडी से कडी सजा मिलनी चाहिए। यदि यह मनघडंत है तो फ़ेसबुक वाले व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए।
घुघूती बासूती
Sayda ji...Internet ek khula munch hi to iska matlab yeh nahi ki aap bina prove ke kuch bhi likh de..aapki emotions smjhe jate hai n mje nai lagta ki koi bhi mansik roop se normal insaan is incident se hurt hue bina rah payega...per aap Indian army ke jawano pe haiwan hone ka ilzam laga rahi hai n koi proof bhi nahi de rahi hi..to mai samjhta hn ki is blog per comment kerne wale bahut sabhya samaj se hai jinhone koi upsabd nahi kahe...
aap "ab ji" ko apne emotions samjhnae ki kosis ker rahi hai n wo aapko aapki responsibilty..hmare jawan kasmir me muskil conditions ka samna ker rahe hai n aise mauke pe hmare sath ki zarorat hai, thik waise hi jaise ki jab aap kisi kathin samsya se gujri hongi aur aapke parents n family member ne apke ser per haath rakhker kaha hoga ki "sab thik ho jayega"..naki ek open forum me unper bebuniad ilzam lgane ka..news me suna ki jawano ko kasmir pahunchte hi duty per laga dia gaya n 36 ghanto tak khana bhi nahi nasib hua...acha hota ki aap is bare me kuch likhti per sayd wo aapke emotions ke scopee nahi aata..
yeh ek political matr hai n political matter me emotions nahi visions important hote hai..aapke emotions ki kadar kerta hn but acha hoga ki aap apne emotions ko personal hi rahne de aur is tarah se "flaunt" kerne ki kosis na kare..baht taklif pahuchti hai at least unhe jo apni respnsbilty nibha rahe hai..jaise ki 36 ghanto se bhukhe hmare jawan
@अनुज जी
सबसे पहले आप अपना लहजा दुरुस्त करें। मेरी पोस्ट किसी पर इल्जाम लगाने का मंच नहीं है बल्कि मेरा वह स्पेस है जिसमें मैं अपनी व्यथा, सोच और अपनी बात को रखती आई हूं।
आपने कहा इंटरनेट सार्वजनिक मंच है, तो इसमें कोई संदेह नहीं। मेरा ब्लॉग भी इस नाते हर रीडर के लिए ओपन है, यहां कोई भी आकर अपना कमेंट कर सकता है, लेकिन जिस लहजे में आप मुझे अपने इमोशन्स अपने तक रखने का निर्देश दे रहे हैं वह सही नहीं है। मैंने अपनी बात रखी, लोगों ने उस पर रिएक्ट किया और आखिकार बात साफ हो गई। एक बात और सेना के जवान किन स्थितियों में काम करते हैं उनकी जानकारी थोड़ी बहुत मुझे भी है।
क्या यह सम्भव नहीं कि वह बच्चा भी पत्थर फ़ेंक रहा हो और जब सेना ने भीड को भगाया तो वह गिरकर कुचला गया? ( यह बिल्कुल असम्भव नहीं है। मैंने एक लगभग दो या तीन साल के बच्चे को भी अन्य उपद्रवियों की देखादेखी पत्थर फ़ेंकते हुए देखा है। यह बात और है कि वह पत्थर अधिक दूर नहीं गया।)क्या सेना को अत्याचार करने के लिए सड्क ही मिली थी? जितना भयंकर काम आपके अनुसार हुआ यदि वह करने में सेना को आनन्द आता है तो वह छिपकर यह कर सकती थी। दिन रात पत्थर खाकर भी क्या उन्हें इतनी समझ नहीं आई होगी कि ऐसा करने से और पत्थर पडेंगे। कितने भी क्रूर व्यक्ति को पत्थर खाना पसन्द तो नहीं ही होगा।
एक और बात, लेखक को केवल एक गोली मारकर उन वहशी सैनिकों ने क्यों छो्ड दिया होगा? क्या उसके मुख में भी बन्दूक डालने का, हड्डियाँ तोडने का आनन्द नहीं लिया जा सकता था?
सैनिक भी दूध से धुले नहीं हो सकते, विशेषकर तब जब उनपर पत्थर बरसाए जा रहे हों। किन्तु इस कहानी में इतने छेद हैं कि यह अविश्वसनीय बन गई है। थोडी सी कम बर्बरता बताई होती या कहा गया होता कि यह काम छिपकर किया गया तो विश्वास हो जाता।
शायद आपको बुरा लगे किन्तु कम से कम यह रपट तो नकली ही लगती है। जिस भी कारण से उस बच्चे की मृत्यु हुई हो, मुझे बेहद दुख है।
यदि यह घटना सच में घटी है तो यह कृत्य करने वालों को कडी से कडी सजा मिलनी चाहिए। यदि यह मनघडंत है तो फ़ेसबुक वाले व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए।
घुघूती बासूती
@Ghuguti jee
सबसे पहले ये बता दूं कि आपकी बात का मुझे बुरा नहीं लगा न ही लगेगा क्योंकि आपको मैंने हमेशा सही बात रखते हुए पाया है। हां यह बिल्कुल संभव है कि वह बच्चा कुचला गया हो। इस केस में तीन तरह की बातें सामने आई हैं, एक वह जो मेरी पोस्ट का हिस्सा है। दूसरी वह जो मेजर गौतम ने कही और तीसरी यह कि वह जो आपने कही है। जिस दिन मैंने वह कमेंट देखा था तब तक मुझे एक ही वर्जन पता था। तो बहुत संभव है कि वह बच्चा कुचला गया हो, लेकिन मेरा सवाल बिल्कुल वही है जो था कि क्या एक बच्चे को इस तरह मर जाना चाहिए। आप समझ सकती हैं कि मेरा दुख इस बच्चे से जुड़ा है जो शायद बहुत सारे खराब हालात का शिकार है। पत्थर बाजी होते हम हर रोज देख रहे हैं और लोगों को मरते हुए भी। ये सब अपने आप में दुखद और निराश कर देने वाला है। मुझे विश्वास है कि आप मेरी बात समझ पाई हैं।
मेरी संवेदनायें कहीं मर तो नही चुकी, बस कभी कभी ताज्जुब कर लेता हूँ इस बात पर कि काश्मीर में मरे या मारे गये बच्चे और अफगानिस्तान में मारे जा रहे बच्चों में तो फर्क नही किया जा रहा। ईरान में किसी महिला को एक छोटे से कसूर पे पत्थर से मारने की सजा ज्यादा बर्बर है या दुनिया के किसी कोने में किसी मासूम के साथ की गयी जबरदस्ती।
कई बार ये भी समझ नही पाता कि भीड़ में गोली चलाने से ज्यादा लोग मरते हैं या किसी सोशियल नेटवर्क की साईट में अफवाह फैलाने से। समय से पहले कोई भी मरे दुख होता है और अगर वो बच्चा हो तो कुछ ज्यादा लेकिन जब संवेदना को नमक मिर्च के साथ व्यक्त किया जाता है तो सिवाय आक्रोश के कुछ नही कर सकता।
@Tarun
मुझे समझ नहीं आया कि कश्मीर में मरे बच्चे के प्रति संवेदना होना किस तरह अफगानी बच्चे के प्रति गैरसंवेदनशील होना हुआ, कैसे इसे इस बात से जोड़ा जा सकता है किसी महिला को दरिंदगी से पत्थर मार'मार मार डाले जाने से, क्या सिर्फ इसलिए कि उन पर यहां कोई पोस्ट दर्ज नहीं है। मेरा निवेदन है कि मेरी बात को उसी तरह लें जिस तरह मैं कहना चाह रही थी। बुराई हर जगह बुराई ही है और होनी चाहिए, मेरा इतना ही कहना है, फिर ये बुराई चाहे जहां हो जो कर रहा हो।
Shayada,
Mene apne comment me ek jagah bhi ye nahi keha ki aapki post ya aapki kahi baat galat hai. Main comment ki shuruaat hi apne se ki hai.
Un ghatnao ka jikra isliye kiya hai ki ghatnayen ek samaan hote hue bhi logo ke reaction different hote hain.
बच्चा
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